मेरी मंज़िल पे मुझे मिलना वहीँ मेरी कसम,
तेरी मौजों हैं मेरा साहिल रही तेरी कसम।
अब रूठकर ऊँची मीनारों से परिंदे उड़ गये हैं
लौटकर आएंगे फिर लगता नहीं तेरी कसम।
मैं ढूंढने निकला सकून-ए-दिल कहीं मिल गर,
पूरे गुलिस्तां में हंसीं मंज़र नहीं तेरी कसम।
जी ज़िन्दगी को मन्नतें चुनके ज़मीं पर लाईं थी,
भूख है मुंह में निबाला घर नहीं तेरी कसम।
उंगलिओं पे गलतियां मेरी गिना करते हैं वो,
अब मज़ा जीने में कुछ बाँकी नहीं तेरी कसम।
हाँ तोड़कर मुझको पुनःजोडा गया है दोस्तों,
चूड़ियों का मोल है किस्मत नहीं तेरी कसम।
यार घर -घर में दिवारें उग रहीं हैं आजकल,
वक़्त है 'ना' प्यार है चाहत नहीं तेरी कसम