बहुत हो गया ज़िन्दगी देख ली,
तेरे प्यार की बेरुखी देख ली।
तरसते रहे रौशनी के लिए,
उजालों की भी दोस्ती देख ली।
ज़माने से कोई शिकायत नहीं,
समंदर में प्यासी नदी देख ली।
ना पूछो मेरे दर्द की बानगी,
लहू में मची खलबली देख ली।
अज़ी मान भी लो मैं ज़िंदा नहीं,
झलक मौत की ताजगी देख ली।
इरादा नहीं था मगर हाँ किया।
आंखों में जब-जब नमीं देख ली।
उबलने लगा हर लहर का जुनूँ ,
बहुत मौजों ने शर्मिंदगी देख ली।
किधर जाएंगे आखिरी मोड़ है,
खुदाबन्द की बंदगी देख ली।
नहीं मानता कोई'अनुराग'की,
बहुत घूम कर घर गली देख ली।