मेरे बिखरे हुए एहसास ये हालात तो देखो,
गिरे खंजर पे जाकर फिर मेरे जज्बात तो देखो।
उठा कर ले गए वो थे मेरे सम्मान के टुकड़े,
रही आँखों से होती बे-हिसां बरसात तो देखो।
नहीं बुझती मेरी सांसें ज़हर पी-पी के ज़िन्दा हैं,
गुजरते बेखुदी में क्यों मेरे दिन-रात तो देखो।
मेरे इखित्यार में अब तो मेरी साँसे नहीं यारों,
निभाने को नहीं बांकी बचे रस्मात तो देखो।
क़यामत लौट आयी फिर हमारी आग्मानी को,
जनाजे की तरह निकलेगी अब बारात तो देखो।
कभी दो गज ज़मीं आती नहीं थी मेरे हिस्से में,
मेरी मइयत पे कुरबां दो जहां इफरात तो देखो।
वसीयत ने बता दी आज फिर फ़ितरत जमाने की,
रकीबों ने चलाई दोस्ती की बात तो देखो।
बिछड़ के अपने साये से दुबारा मिल नहीं पाए,
समय की शाख से टूटे हुए लम्हात तो देखो।
तेरे बहशी ख्यालों ने लगा दी आग पानी में,
जलेंगे ज़िन्दगी भर हो गई शुरुआत तो देखो।
**अवधेश प्रताप सिंह भदौरिया'अनुराग'**
॥ २६/०२/२०१७॥