हमको वफा के नाम से,
लगता है डर अंजाम से।
ये बेखुदी भी अजीब है,
जीने ना दे आराम से।
अब और जीकर क्या करूं,
जब हो गए बदनाम से।
तुम भूल जाओ दोस्तों,
बाहर करो पैगाम से।
मैं ज़िन्दगी भर दर-ब-दर,
भटका फिरा हूँ मुकाम से।
कहना था जो भी कह दिया,
अब डर नहीं संग्राम से ।
'अनुराग'कुछ तो कीजिये,
मैं भी लगूं शुभ-काम से ।