मुझे बेरुखी तल्खियां मिल रहीं हैं,
मगर इल्म की खिड़कियां खुल रहीं हैं।
मैं गिन-गिन के लूंगा ज़माने से बदला,
अभी तो मेरी उँगलियाँ छिल रहीं हैं।
मेरी चाहतों को वो समझेंगे इक-दिन,
अभी तो उन्हें सुर्खियां मिल रहीं हैं।
चिरागों को रौशन रखेंगे हमेंशा,
भले गर्दिशी आंधियां चल रही हैं।
बदलना तो है रुख हवाओं का हमको,
मगर रंजिशें धमकियां मिल रहीं हैं।
यूँ कब तक सुलगती रहेंगी ये साँसें,
यहाँ प्यार की बस्तियां जल रहीं हैं।
भुला देंगे तुमको इरादा नहीं है,
तुम्हें भी मेरी खामियां खल रहीं हैं।
हैं हालात भी शख़्त पिंजड़े के जैसे,
बधीं पाँव में रस्सियां मिल रहीं हैं।
कि अब रूप और रंग के ढल गए दिन,
बचे हुस्न की होलियां जल रही हैं।