जो फूल तितलियों पर कुर्बान हो गए,
वो दौर गुलिस्तान के अरकान हो गए।
बुझते हुए सूरज की रमक देखते रहे,
रातों के अँधेरे ही मेहरबान हो गए।
उसने गुरुर में सुकूने दिल गवा दिया,
बदले मिजाज सूरते फ़रमान हो गए।
ग़ुरबत ने ज़िन्दगी से परिचय करा दिया,
अपने पराय आज सब अनजान हो गए।
रखते थे अपने आपको ढक के हिजाब में
कुछ लोग कोतवाल कुछ दीवान हो गए।
पैबंद ओढ़कर अभी ज़िंदा है आदमीं,
कपडे उतार कर कई भगवान् हो गए।
फुरसत से सोचने का गया वक़्त आपका,
घर आंगन कोने-कोने सब वीरान हो गए।
अब रास्ते भी कारवां से कट गए हैं फिर,
झोंके हवा के दोस्तों तूफ़ान हो गए।
गहरे थे ज़ख्म फिर भी तो'अनुराग'भर गए,
आगाज़ हो गया जीने के उनवान हो गए।