मोहब्बत हो गई तुमसे बताना चाहता हूँ मैं,
तुम्हारा रास्ता बनकर दिखाना चाहता हूँ मैं।
जो मेरी रूह तक नस-नस में भरती है मुहब्बत,
उसी एहसास को तुझमें जगाना चाहता हूँ मैं।
लहर बनकर समन्दर की बहुत ढूँढा मेरे साहिल,
नदी बनकर तेरे भीतर समाना चाहता हूँ मैं।
खता समझो वफ़ा समझो जो मर्जी आपकी समझो,
तुम्हारे नाज-नखरों सब उठाना चाहता हूँ मैं।
उभर कर आयेंगे जिस दिन मेरे अरमां समझ लोगे,
तेरे दुःख-दर्द को अपना बनाना चाहता हूँ मैं।
शिकन माथे पे तेरे देख कर मैं टूट जाता हूँ,
वो सारी आग पीकर के बुझाना चाहता हूँ मैं,
मेरी दुखती हुये तन पर महज तुम हाथ रख देना,
मधुर स्पर्श का अब तो मरहम लगाना चाहता हूँ मैं।
बहुत मिल जायेंगे यूँ तो हमें भी चाहने वाले,
ये दुनिया से नहीं तुमसे निभाना चाहता हूँ मैं।
कोई ज़ंजीर बांधेगी मुझे मुमकिन नहीं लगता,
ज़माने को तेरे आगे झुकाना चाहता हूँ मैं।
इसी जिद में पिघल जायेंगे इक दिन चाँद-तारे भी,
चमकता चाँद और सूरज उगाना चाहता हूँ मैं।
इशारों पर थिरकते थे हजारों दिल-जवां जिनके,
उसी 'अनुराग'को तुमसे नचाना चाहता हूँ मैं।