वो हमें आफ़ताब कहते हैं,
बेबजह लाजवाब कहतें हैं।
रुख से परदा नहीं उठाया है,
लोग तो बेनक़ाब कहते हैं।
मुन्तजिर हूँ मरीज भी तेरा,
आप क्यों इन्कलाब कहते हैं।
मैंने आंसू पिये हैं जी भरके,
लोग यूँ ही शराब कहते हैं।
ले गई पंख उड़ा कर आँधी,
ज़िन्दगी है जनाब कहते हैं ।
साथ जो भी मेरा दिया तुमने,
हम इसी को खिताब कहते हैं।
वो जुबां से मुकर गए लेकिन,
वक्त का था हिसाब कहते हैं।
संगदिल आप सा नहीं देखा,
फूल - कांटे - गुलाब कहते हैं।
सिर्फ 'अनुराग'ही मुक़द्दर है,
आप क्यों इन्तखाब कहते हैं।