बदलते रहे रास्ते ज़िन्दगी भर,
रुके भी नहीं ना थके ज़िन्दगी भर।
कहाँ आ गए आज हम चलते-चलते,
बुलाती रहीं मंजिलें ज़िन्दगी भर।
नजर अपने चेहरे की जानिब न डाली,
दिखाते रहे आईने ज़िन्दगी भर।
ख़ुशी और गम हम कदम हैं हमारे,
निभाते रहे ये हमें ज़िन्दगी भर।
तमाशा बना मैं तमाशाई दुनिया,
नचाते रहे वो हमें ज़िन्दगी भर।
कहाँ हो गई चूक मुझसे ना जाने,
बुझाते रहें हैं जले ज़िन्दगी भर।
वो इक वार मिलके जुदा हो गए हैं,
पलट कर ना आये-गए जिंदगी भर।
अंधेरों में दम घुट रहा है सभी का,
उमींदे जलाते रहे ज़िन्दगी भर।
हदे ज़िन्दगी से मैं बाहर खड़ा हूँ,
बुलाते रहे तुम किसे ज़िन्दगी भर।
ना बदली नजर ना नजरिया ही बदला,
उठाते गिराते रहे ज़िन्दगी भर ।
तरसते रहे रौशनी के लिए हम,
वो सूरज उगाते रहे ज़िन्दगी भर।