कि जब-जब मुहब्बत में ढलती हैं साँसे,
बहुत सादगी से पिघलती हैं साँसें।
उतर जाते हैं दिल की गहराइयों में,
चिरागों की मानिंद जलती हैं साँसें।
खुली-बंद पलकों में ख़्वाबों के जुगनूं,
हवाओं में खुशबू सी घुलती हैं साँसें।
लहर की तरह बह रही है लहू में,
समन्दर के माफिक उफनती हैं साँसें।
ये काली-घनी रात में चाँदनी सी,
लो दुल्हन सी सजती-संवरती हैं साँसें।
मिली ज़िन्दगी भर दुआ-बददुआ भी ,
सदा सुख में दुःख में महकती हैं साँसें।
इरादों की मासूमियत भांप लेती ,
ख्यालों से फिर घुलती मिलती हैं साँसें।
सलीके से ये हमको जीना सिखाती,
सही बात सुनती समझती हैं साँसें।
कभी वक़्त अपना पराया भी होगा,
बड़ी मुद्दतों से सुलगती हैं साँसें।
हमें आजकल भाव देती नहीं हैं,
अंधेरो में बस जलती बुझती हैं साँसें।