अभी भी खयालो में आते हो तुम,
कहीं भी कभी भी सताते हो तुम।
करीब आते आते जुदा हो गए,
निगाहों से क्यों दूर जाते हो तुम।
मेरा हौंसला टूट सकता नहीं,
उम्मीदें हमेशा जगाते हो तुम।
मैं दस्तूर की बात करता नहीं,
महज रस्म सा दिल लगाते हो तुम।
गुजर जायेंगे मौजें तूफ़ान भी,
किनारों पे क्यों डूब जाते हो तुम।
मुक़द्दर तो बनके बिगड़ जायेंगे,
गुनाहों का क़द क्यों बढ़ाते हो तुम।
बुलाते तो हो घर बिठाते नहीं,
उसूलों को फिर भूल जाते हो तुम।
खरीदो या बेचों हूँ बाज़ार में,
दुकाने तो अच्छी सजाते हो तुम।
नहीं लौट कर वक़्त आता कभी,
यूँ ही वक़्त को क्यों गंवाते हो तुम।