मेरी खता थी लेकिन मुझे कुछ पता नहीं,
कुछ तो हुआ है यारों मुझे दी सजा नहीं
तबियत से खुशमिजाज हूँ लेकिन उदास हूँ,
मेरा ख़याल बन के कोई सोचता नहीं,
कोई बजह नहीं थी मगर वो मुक़र गया,
पर आता नहीं.ईना तो झूठ कभी बोल
लाखों चिराग जल के फ़ना हो गए मगर,
फिर भी अँधेरा जहन का अब तक मिटा नहीं
चाहा तो भूल जाऊं मगर भूलता नहीं,
तुमने दिया जो ज़ख्म अभी तक भरा नहीं।
पल-पल जिसे बजूद में शामिल किये थे हम,
कुर्वानियां तो लाख हुआ वो मेरा नहीं।
चलता रहा वो साथ में मानिंद हमसफर,
लेकिन वो अजनबीं था मेरा कारवां नहीं।
कीमत लगा के ऊँची सजाया दुकान में<
बैठा तो हूँ बज़ार में अब तक बिका नहीं।