वक़्त गफलत में सब गँवा बैठे,
आस किस्मत से हम लगा बैठे।
धुंध है धूल है धुंआ सा है,
क़तरा-क़तरा लहू जला बैठे।
रोक ली सांस सच बताने में,
झूठ को मर्शिया बना बैठे ।
नूर चेहरे से हो गया गायब ,
तेरे कदमों में सर झुका बैठे।
खूब कायम रखी जुबां अपनी,
आँख सूरज से भी मिला बैठे।
रंज इस बात का रहा मुझको,
हम चिरागों से घर जला बैठे।
बदल के शहर का हवा पानी,
मौत का कारवां बुला बैठे ।
संग उड़ते रहे हवाओं के ,
पंख अपने यूँ ही कटा बैठे।
बात 'अनुराग'मान लो मेरी,
आप पत्थर से दिल लगा बैठे।