ありがとう友人. मतलब शुक्रिया दोस्त. ये जापानी भाषा में लिखा है. इसे जापानी में ‘एरिगातो यूजिन’ बोलते हैं. सब जानते हैं कि जापान भारत का पुराना और बहुत अच्छा दोस्त रहा है. यही वजह है कि वो भारत की पहली बुलेट ट्रेन बनाने के लिए पैसों के साथ ही टेक्नॉलजी भी हमें दे रहा है. ऐसी ही कई और चीजें उसने हमको दीं जिनके लिए हमें जापान को ありがとう友人 बोलना चाहिए. जानते हैं उन चीजों के बारे में-
1. जापान और हमारी जनता कार
जैसे बिस्कुट का मतलब पारलेजी था. टूथपेस्ट को लोग एक कोलगेट देना कहके ही लेते थे. वैसे ही अपने देश में कार का मतलब मारुति ही होता था. भारत में इस कंपनी को लाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के छोटे लाल संजय गांधी थे. साल था 1970. मगर कंपनी कुछ खास नहीं कर पाई. डूबने की कगार पर थी. फिर साथ मिला एक जापानी कंपनी का. नाम सुजुकी. 1982 में दोनों मिलकर मारुती सुजुकी हो गए. इस साझेदारी का पहला तोहफा 1983 में मिला. जनता कार यानी मारुति 800. वो कार जो स्टेटस सिंबल बन गई. जिसके पास होती थी, उसका अलगै भौकाल रहता था. 1984 में इस कंपनी ने मारुति वैन दी. वही कार जिसको फिल्मों में किडनैपिंग के लिए इस्तेमाल किया जाता था.
1985 में भारत को मिली जिप्सी. इस गाड़ी को कहीं भी कीचड़, जंगल, खेत खलिहान में घुसा दो, चलती रहेगी. जापानी पीएम शिंजो आबे ऐसे ही थोड़ी ना मोदीजी के साथ जिप्सी में घूम रहे थे. ये भारत-जापान की दोस्ती को दिखाने का एक तरीका था, ये देखिए –
1993 में जेन कार और 1994 में इस्टीम कार आई. पहली जाबड़ सेडान कार. वही जो अफलातून फिल्म में अक्षय कुमार के पास थी. फिर ऐसे ही गाड़ियां आती गईं और कंपनी की बम बम होती गई. और हमारी आपकी जिंदगी की रफ्तार बढ़ती गई. आज की तारीख में भारतीय कार मार्केट का 51 फीसदी हिस्सा मारुति सुज़ुकी के कब्जे में है.
2. यामाहा का तो भौकाल सभी को याद होगा
यामाहा की RX 100 बाइक कौन भूल सकता है. मतलब जिस लौंडे के हाथ ये बाइक लग गई, उसे टाटा-बिरला की औलाद से कम नहीं समझते थे लोग. क्या भागती थी. क्या पिकअप था. इनवर्सिटी के लड़कों के लिए तो मारपीट के बाद भागने के लिए ये बाइक बहुत काम की थी. 1990 के दौर में राजदूत, येजडी और वो सुई मिलाने वाली बुलेट चलाके बोर हो चुके लोगों के लिए तो ये किसी अवतार से कम नहीं थी. फिर एवरेज भी 40 का था सो लफंडरई के लिए भी ये सही थी. इसकी आवाज के दीवाने तो आजतक हैं लोग. तमाम लोग ऐसे मिल जाएंगे जो आज भी इस बाइक को सहेजकर, चमकाकर रखते हैं.
3. गाना-बजाना भी तो जापानियों ने ही मॉडर्न बनाया
असली क्रांति तो 1990 के दौर में आई थी. मर्फी रेडियो वगैराह से गाना सुन-सुनकर बोर हो चुके लोगों के हाथ लगा था वॉकमैन. जापानी कंपनी सोनी का वॉकमैन. जिनके पास ये वॉकमैन होता था, उन्हें उस जमाने का डूड समझिए आप. हर स्कूल-कॉलेज के लड़के की बस यही चाहत होती थी कि कहीं से ये वॉकमैन हाथ लग जाए. उस वक्त आईफोन नहीं, वॉकमैन से ही लड़कियां इम्प्रेस होती थीं. फिर हमारे घरों में, कार में और बाकी सब जगह टेप भी तो जापानियों ने पहुंचाया. फिर कलर टीवी, एलसीडी टीवी आईं, वॉशिंग मशीन आईं, सीडी प्लेयर आया, डीवीडी प्लेयर आया. हमाए मौहल्ले में तो एक लौंडे का नाम भी सीडी था. मल्लब क्राइम डॉन.
4. कैमरे का चस्का भी जापानी कंपनी ने लगाया
1985-90 के दौर में ज्यादातर ब्लैक एंड व्हाइट कैमरे ही आते थे. एकाध कलर के थे तो वो बहुत महंगे थे. तो जापान की एक कंपनी याशिका का एक कैमरा आया MS-2.कीमत 2 हजार रुपये थी. इसकी फोटो का रिजल्ट भी जबर्दस्त था. प्रफेशनल फोटोग्रफी का चस्का इसी कैमरे से लोगों को लगा. फोटोग्रफी को इसी कैमरे ने अपने देश में आसान बना दिया. इसी खिलौने ने ही तो हमारी आपकी ना जाने कितनी यादें कैद कीं. वो रील वाले कैमरों का जमाना था. लोग रीलें भी संभालकर रखते थे. उससे दोबारा फोटो बन जाती थी ना. फिर कैनन, निकॉन जैसी जापानी कंपनियों ने फोटोग्रफी को और आसान बना दिया. डिजिटल कैमरे आ गए. रील का काम खतम हो गया. और अब तो सबै लोग कैमरा टांगे घूम रहे हैं.
5. दिल्ली मेट्रो में मदद की, अब बुलेट ट्रेन की बारी
दिल्ली मेट्रो बनाने में भी जापान ने दोस्ती निभाई और हमारी हर मदद की. जापान के बैंकों ने ही इसके लिए लोन दिया. टेक्नॉलजी दी. अब जापान हमें बुलेट ट्रेन देने जा रहा है. मुंबई से अहमदाबाद के बीच चलने वाली ये भारत की पहली बुलेट ट्रेन होगी. 15 अगस्त 2022 तक इसे शुरू करने का प्लान है. इस प्रॉजेक्ट पर 1.1 लाख करोड़ रुपये खर्च होंगे. इसका 81 फीसदी यानी 90 हजार करोड़ रुपये जापान दे रहा है. वो भी 0.1 फीजदी की ब्याज दर पर. भारत को इसे 50 साल में चुकाना होगा.