दुनिया कितना आगे बढ़ गई है. लोग चांद पर पहुंच गए. पर कुछ लोगों की सोच अब भी पाताल में घुसी हुई है. वो अब भी पुरातन काल में जी रहे हैं. सवर्ण होने का खुमार इनके सिर से उतर ही नहीं रहा है. कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के चन्नूर नाम के एक गांव में तो हद ही हो गई है. खबर है कि यहां कुछ लोगों ने कुएं में जहरीला कैमिकल डाल दिया. ऐसा इसलिए किया गया ताकि गांव में रहने वाले दलित पानी ना पी पाएं.
बेंगलुरु से लगभग 640 किलोमीटर दूर इस गांव में सात कुएं हैं, जिसमें से दलित समुदाय के लोगों को सिर्फ एक कुएं से पानी पीने की इजाजत है. बाकी के कुओं में सवर्णों का कब्जा है. किसी तरह काम चल रहा था कि जिस जमीन पर ये कुआं है, उसकी लीज चार साल पहले एक दबंग जाति के व्यक्ति को दे दी गई. फिर संकट खड़ा होना ही था. गोलालप्पागौड़ा कुकानुर नाम के इस व्यक्ति ने दलितों को इस कुएं से पानी खींचने की मनाही कर दी. इस पर लोगों ने एक मोटर पंप का सहारा लिया और अपने घरों में सप्लाई करने लगे.
अंग्रेजी अखबार टाइम्स ऑफ इंडिया में छपी रिपोर्ट में बताया गया है कि आरोपी दबंग ने पहले तो दलितों को रोकने के कई प्रयास किए, मगर कुछ दिन पहले वो टुच्चई पर उतर आया. हुआ यूं कि दो दिन से बिजली न आने पर एक दलित व्यक्ति कुएं के पास पानी निकालने गया तो उसने देखा कि पानी से बदबू आ रही है. फौरन उसने सभी से पानी पीने को मना किया. फिर सभी ने पुलिस में शिकायत कर दी. कलबुर्गी देहात के डीएसपी ने बताया कि पानी के टेस्ट में पता चला कि इसमें इंडोसल्फन नाम का जहर मिला दिया गया था. पुलिस ने कुएं को साफ करवाने का काम शुरू करवा दिया है. हैरान करने वाली बात ये है कि इस दिक्कत के बावजूद गांव के सवर्णों ने दलितों को अन्य 6 कुओं से पानी नहीं लेने दिया. तहसीलदार ने गांव में दलितों के लिए टैंकर की व्यवस्था की है.
मध्यप्रदेश में भी हुई थी ऐसी हरकत
आरोपी गोलालप्पागौड़ा कुकानुर के खिलाफ पुलिस ने हत्या के प्रयास और दलित उत्पीड़न एक्ट की धारा-3 के तहत मुकदमा दर्ज कर लिया है. उसे गिरफ्तार भी कर लिया गया है. आरोप है कि गिरफ्तारी के लिए जाते वक्त भी आरोपी दलितों से बदला लेने की धमकी दे रहा था. इधर, इसकी भी जांच की जा रही है जमीन की लीज इसके नाम कैसे हुई. ऐसा ही एक मामला कुछ दिन पहले मध्य प्रदेश के मना गांव में भी हुआ था, जिसमें कुछ सवर्णों ने एक कुएं में केरोसीन डाल दिया था. वजह यहां भी दलितों को पानी के कुओं से दूर रखना था.
कुछ दिन पहले ही देश को एक दलित राष्ट्रपति मिला है. इसे इस तरह फ्रेम किया गया कि देश में दलितों की स्थिति कितनी मजबूत है. मगर हकीकत क्या है, उसे बताने के लिए ऊपर की घटना काफी है. साफ पता चलता है कि देश के कई हिस्सों या कहें गांवों में अब भी ऊंच नीच का पापड़ बेला जा रहा है. इसे खत्म करने के लिए सबको आगे आना चाहिए. सरकारों के साथ ही हम सब की जिम्मेदारी है कि ऐसी सामाजिक कुरीतियों को खत्म करने के लिए हर संभव कोशिश करें.
साभार: द लल्लनटॉप