

ऐसी तस्वीरें निराश करती हैं. (फोटो क्रेडिट: communalism.blogspot)
बरसों-बरस एक नारा सुनते रहे कि ‘इस्लाम ख़तरे में है’. कभी किसी कार्टून से, कभी किसी खिलाड़ी की स्कर्ट से, तो कभी किसी क्रिकेटर की पत्नी की नेल पॉलिश से. छोटी-छोटी बातों पर इतनी बार इस्लाम ख़तरे में पड़ चुका है कि अब इसकी आदत हो गई. अब तो कईयों ने मान ही लिया है कि इस्लाम के बाड़े में पानी हमेशा ख़तरे के निशान के ऊपर ही रहता है.
हां, भारत में हिंदुत्व को इस कीड़े ने हाल-फिलहाल ही काटा है. पिछले कुछ अरसे से कुछ लोग/विचारधाराएं/संगठन चीख़-चीख़ कर बता रहे हैं कि हिंदुत्व ख़तरे में हैं. हिंदू सभ्यता, संस्कृति, समाज सब. एक लंबे अरसे तक इसे इस मुल्क की अक्सरियत ने इग्नोर किया, लेकिन अब लगता है वाकई ऐसी बात है.
वाकई हिंदुत्व पर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं. बस वजहें इन लोगों से कतई अलग हैं. किसी ख़ास धर्म को अपना प्रतिद्वंदी मान कर और उसी की तुलना में खुद को तौल कर, बेबुनियाद खतरों का महल खड़े करने वालों पर हमें कुछ नहीं कहना. हम ना तो मुग़लों की ‘कारगुजारियों’ से हुए नुकसान की बात करेंगे, ना ही कैसे नेहरू-गांधी ने हिंदुत्व का बेडा गर्क किया ये बताएंगे. हमारी चिंता कुछ अलग है. क्या ये बताते हैं.
हिंसा से बढ़ता प्रेम
ये आरोप नहीं है. ये पिछले कुछ सालों में हुई घटनाओं के मद्देनज़र बनाई गई ईमानदाराना राय है. हिंदू धर्म अपनी बुनियादी शिक्षाओं में हिंसा की गंभीरता से मुखालफत करता है. यहां तक कि इसकी कई शाखाओं में मांसाहार तक वर्जित है. किसी भी जीवित जानवर को चोट न पहुंचाने की परिकल्पना को हिंदू धर्म में बड़ा सम्मान दिया जाता रहा है. मांसाहार को छोड़ भी दिया जाए, तो भी हिंसा को घृणा की नज़रों से देखने की परिपाटी रही है.
लेकिन अब लगने लगा है कि ये नज़ारा बदल रहा है. हिंसा को जायज़ ठहराने वाले तर्क सुनाई देने लगे हैं. ‘हमने क्या चूड़ियां पहनी है’, ‘ईंट का जवाब पत्थर से देंगे’ जैसे जुमले आम होने लगे हैं. भले ही आगे से आनेवाली ईंट का बस भरम भर हो. Whatsapp शेयरिंग की बदौलत मिलनेवाले भड़काऊ, अधकचरे ज्ञान पर ख़ून खौलने लगा है. अब जानवर के नाम पर मारे गए इंसान की ख़बर सुन कर दिल में कोई हूक नहीं उठती. इंसाफ होने का संतोष मिलता है.
संतुष्टि के इस ख़तरनाक रसायन से हिंदुत्व को ख़तरा है.
बाबाओं के क़दमों में लोट लगाता हिंदुत्व
ऋषि-मुनियों में अगाध श्रद्धा का चलन, विद्रूप शक्ल धारण करते हुए फर्जी बाबाओं के चरणों में नतमस्तक होता दिखाई दे रहा है. एक अजीब तरह का सम्मोहन है इन बाबाओं का, जो विवेक से कनेक्शन ही काट देता है. स्वघोषित संतों की प्रशंसक जमात में इतनी संख्या में लोगों का होना, धर्म के मर्म की हत्या जैसा लगता है.
ऊपर से तुर्रा ये कि ये भीड़ अपने आराध्य के तमाम सियाह-सफेद कारनामों को पूरी बेशर्मी से डिफेंड करती है. उसके लिए खुद हिंसा पर उतारू हो जाती है. आसाराम, रामपाल, राम-रहीम जैसे लोग क्रिमिनल एक्टिविटीज के चलते जेल भुगत रहे हैं. और इनके समर्थक इनके कारनामों से चेत जाने की बजाए, अपने ही देश को फूंक डालने पर आमादा हो जाते हैं.
इस अंधे उन्माद से हिंदुत्व को ख़तरा है.
हवा होती सहिष्णुता
हिंदुत्व की बेसिक तालीम में जो सबसे आकर्षक तत्व है, वो है सहअस्तित्व की परंपरा. इस मुल्क में ढेरों मज़हब सदा से रहते आए हैं. हिंदू धर्म जिनमें सबसे बड़ा है. इस धर्म की बेसिक सहिष्णुता का ही कमाल था कि सदियों तक कोई बड़ा कंफ्लिक्ट पैदा न हो पाया. अपवाद वाले उदाहरण न गिनाइए. बिल्कुल परफेक्ट कुछ नहीं होता.
हिंदुत्व में आप शौक से नास्तिकता का चोला ओढ़ सकते हैं. बिना बॉयकॉट का खौफ़ खाए. इसकी बेसिक मान्यताओं पर पूरी निर्ममता से प्रहार किए जाने की छूट हासिल है, जिसे ‘ब्लासफेमी’ का नाम तो नहीं ही दिया जाता. अब कुछ बदलाव दिखाई दे रहा है. धार्मिक पाखण्ड की मुखालफत करने वाले लोगों को जान का ख़तरा भी हो सकता है. नरेंद्र दाभोलकर, पानसरे, कलबुर्गी जैसे लोगों की हत्या तो ये मुल्क पचा भी चुका. सहिष्णुता का वलय कमज़ोर होता नज़र आ रहा है.
इस छूटते धीरज से हिंदुत्व को ख़तरा है.
वसुधैव कुटुम्बकम अब सिर्फ किताबों में
कहते हैं ‘सारी दुनिया एक परिवार है’ का मोहक नारा इसी भारतभूमि से सबसे पहले दिया गया था. जब दुनिया भर में साम्राज्यवाद अपनी बदसूरत शक्ल में मौजूद था, हम अपने बच्चों को सिखा रहे थे कि सारी धरती अपना घर है. अब मामला वसुधा से सिमट कर राष्ट्र की सीमाओं में क़ैद हो गया है. अब राष्ट्रवाद हावी है. बुरी तरह. चिढ़ दिलाने की हद तक.
अपने मुल्क से प्रेम होना, उस पर गर्व करना कोई बुरी बात नहीं. लेकिन उस प्रेम के लिए आपको किसी और से नफ़रत करनी पड़े, तो बेकार है सब. प्रेम का आधार प्रेम ही होना चाहिए, नफरत या प्रतिस्पर्धा की भावना नहीं. किसी और मुल्क से की जा रही नफरत के आधार पर देशप्रेम को आंका जाना ख़तरनाक ट्रेंड है.
ऐसी तमाम नई परिपाटियों से हिंदुत्व को ख़तरा है.
इस आर्टिकल को पढ़ने के बाद उत्तेजित होने की बजाय थोड़ा थमकर सोचिएगा. ये किसी धर्म की बुराई नहीं है. ये इस मुल्क में आ रहे बदलावों के प्रति जेन्युइन चिंता है.
थोड़ा शांतचित्त मन से इसे वीडियो को देखिएगा तो: