

दीपक डोबरियाल फिल्म "तनु वेड्स मनु रिटर्न्स" (2015) में.
दीपक डोबरियाल उन एक्टर्स में से नहीं हैं जिनके बारे में बात करने के लिए आपको बहुत ऊर्जा खर्च करनी पड़े या अपने ज्ञान चक्षु खोलने पड़ें. वे ऐसे एक्टर नहीं हैं जिनके nuances में जाने का नाटक करना पड़े. और उनके सबसे यादगार रोल इतने विस्तृत भी नहीं रहे हैं कि आपका बहुत सारा समय लें. लेकिन जितना सा भी आप देखते हैं, आप हंसकर लोटपोट हो जाते हैं या फिर एक अनूठी एक्टिंग के आनंद में खोए रहते हैं.
निश्चित रूप से ‘तनु वेड्स मनु’ और उसके भाग-2 में उनके द्वारा निभाया गया पप्पी जी का किरदार उनका अब तक का सबसे यादगार है. वैसे फिल्मी भाषा में इसे सपोर्टिंग एक्टर कहा जाता है, और उन्हें बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर इन कॉमिक रोल में अवॉर्ड भी मिला इसी फिल्म के लिए, लेकिन ये न्याय नहीं है. ये सपोर्टिंग रोल जैसा कुछ होता नहीं है और डोबरियाल के संदर्भ में तो बिलकुल नहीं.
अपने समय में ये संभवत: हिंदी सिनेमा में पहला उत्तर प्रदेश का पात्र था जो सारे स्टीरियोटाइप्स से मुक्त था. नहीं तो आमतौर पर बिहार, यूपी, बंगाल, मद्रास के पात्रों में बोली, लहजे को लेकर पीड़ित करने वाले टोटके होते हैं. डोबरियाल ने पप्पी के पात्र की जैसी विवेचना की वो बहुत ही मौलिक थी.
इस रोल में उनका सिर्फ एक दृश्य देखें और गारंटी है कि आप सोच-सोच कर पूरे दिन हंसते-गुदगुदाते रहेंगे. जबकि इस पूरे सीन में वे सिर्फ एक जगह एक बात बोलते हैं और दीवाना कर जाते हैं. देखें:
उनके निभाए ज्यादातर यादगार रोल ऐसे ही हैं जो मामूली लगते हैं लेकिन बहुत याद रहते हैं. जैसे अनुराग कश्यप की ‘गुलाल’ (2009) में उन्होंने भाटी का रोल किया. इसमें ये पात्र एक दृश्य में पान की दुकान पर खड़ा होता है, वहां कुछ प्रतिपक्षी लोग आते हैं. उससे बात करते हैं और पूरे सीन में डोबरियाल एक भी शब्द नहीं बोलते सिर्फ सिर हिलाकर कम्युनिकेट करते हैं.
विशाल भारद्वाज की 2005 में आई ‘द ब्लू अंब्रैला’ में उनका एक ही सीन होता है. ओपनिंग सीन. जिसमें डोबरियाल का पात्र एक अजीब रोबोट वाले का होता है. वह नंदकिशोर खत्री (पंकज कपूर) के पास बैठा और उसे ईयरफोन से कुछ सुना रहा है. अंत में बिल गेट नाम आता है. वह कहता है, “बिल गेट, ए नंदू! बिल गेट! अरे पता भी है कौन है? करोड़ का, करोड़ का, करोड़ का पति है. वही तो बनने वाला है तू. ख़जाना मिलने वाला है तुझे. (ये बोला इसने) हां, और वो भी अंग्रेजी में. अंग्रेजी में भी झूठ बोलता है कोई?”
उसके अगले साल आई ‘ओमकारा’ में वे सैफ अली खान के साथ रज्जू तिवारी के रोल में नजर आए. इसमें भी उनके तीन-चार सीन हैं और सारे के सारे याद रहते हैं. यहां तक कि फिल्म के लीड एक्टर्स के जितना ही डोबरियाल याद रहते हैं जबकि तब वे निहायती नए एक्टर थे. डोबरियाल याद भी करते हैं कि शूटिंग के दौरान ब्रिज वाला सीन सबसे पहले शूट किया गया था. उससे पहले वे सैफ से सिर्फ एक बार मिले थे और वे एक बड़े स्टार थे. शूट के दौरान जहां सैफ तेल लगाकर टैनिंग के लिए चिलचिलाती धूप में बैठे रहते थे, वहीं वे छाता लगाकर बैठते थे क्योंकि उनकी त्वचा जल्दी ही टैन हो जाती है.
इसके अलावा उन्होंने पिछले साल ‘प्रेम रतन धन पायो’ में सलमान खान के दोस्त का रोल किया. उनका रोल वैसे बहुत बुरा लिखा गया था लेकिन फिर भी उन्होंने अपना काम किया. ‘दबंग-2’ में भी गेंदा सिंह के रोल में उनके पास करने को कुछ नहीं था लेकिन वे याद रहे. ‘तीन थे भाई’ (हैप्पी), ‘दिल्ली-6’ (ममदू), ‘शौर्य’ (कैप्टन जावेद) और ‘1971’ (फ्लाइट लेफ्टिनेंट गुर्तू) में उनके किरदार ठीक थे.
अभी तक उनका करियर संतोषजनक पगडंडी पर है और दिक्कत अच्छी भूमिकाओं की कमी की है. लेकिन उन्होंने साबित कर दिया है कि वे अच्छे से लिखे गए किरदारों (पप्पी जी, रज्जू तिवारी) में जादू भर सकते हैं. और वे फिल्मों में प्रमुख भूमिकाएं भी कर सकते हैं.
राम गोपाल वर्मा ने उन्हें लेकर 2011 में ‘नॉट अ लव स्टोरी’ बनाई थी जो 2008 के नीरज ग्रोवर मर्डर केस पर आधारित थी. इसमें डोबरियाल ने हत्यारे का रोल किया था. रामू के अंदाज में उन्होंने अपने दृश्यों में भय पैदा किया.
उन्होंने निर्देशिका बेला नेगी की फिल्म ‘दाएं या बाएं’ में भी लीड रोल किया था. 2010 में आई इस फिल्म को फिल्म फेस्टिवल्स में सराहना मिली. इसमें डोबरियाल ने स्कूल मास्टर रमेश का रोल किया था जिसकी औसत जिंदगी में एक दिन लग्जरी कार आ जाती है और पूरे गांव में उसकी जिंदगी और समीकरण बदल जाते हैं. डोबरियाल असल में भी पौड़ी गढ़वाल के रहने वाले हैं और फिल्म उसी पृष्ठभूमि की थी.
1 सितंबर को आज उन्हें जन्मदिन पर याद करते हुए ‘तनु वेड्स मनु’ फिल्मों के ही उनके कॉमेडी दृश्य देखें और उम्मीद करें कि ऐसे ही और मुकम्मल रोल उन्हें मिलें और मौलिक अभिनय से वे दर्शकों को समृद्ध करें.