कन्नड़ और अंग्रेजी भाषा की जानी-मानी पत्रकार और कार्यकर्ता गौरी लंकेश मारी गईं. मंगलवार रात वो दफ्तर से घर लौटीं. उन्होंने घर के बाहर अपनी कार पार्क की और दरवाजे की ओर बढ़ने लगीं. ठीक इसी समय बाइक पर आए तीन हमलावरों ने उन पर गोलियां चलानी शुरू कर दीं. लंकेश अपनी जान बचाने के लिए दरवाजे की ओर भागीं, लेकिन इससे पहले कि वो घर में घुस पातीं उन्हें गोली लग गई. हमलावरों ने गौरी लंकेश पर 7 राउंड गोलियां चलाईं. इनमें से 3 गोलियां लंकेश के सिर, गर्दन और सीने में लगीं. बाकी 4 उनके घर की दीवार में धंस गईं. लंकेश ने वहीं दम तोड़ दिया. ये वारदात मंगलवार रात 7.45 से 8 बजे के बीच हुई. लंकेश के घर के सामने वाली इमारत के कुछ लोगों ने पुलिस को इत्तला किया. लंकेश अपने घर में अकेली रहती थीं. उनकी हत्या के एक घंटे के भीतर ही वहां सैकड़ों लोग जमा हो गए. ये लोग सांप्रदायिक ताकतों के खिलाफ नारा लगा रहे थे. उन्हें यकीन था कि लंकेश अपनी पत्रकारिता के कारण ही मारी गईं हैं.
लोग लिख रहे हैं: कलबुर्गी, पनसारे और दाभोलकर जैसी ही है गौरी लंकेश की हत्या
हिंदुत्व और जातिगत राजनीति का विरोध करने वाली लंकेश कन्नड़ भाषा में अपना एक टैबलॉइड ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ चलाती थीं. दक्षिणपंथी राजनीति उनकी कलम के निशाने पर थी. उनकी हत्या का अंदाज नया नहीं है. 2015 में इसी तरीके से लेख क और हंपी यूनिवर्सिटी के पूर्व VC एम एम कलबुर्गी की भी हत्या हुई थी. बाइक सवार हमलावरों ने कलबुर्गी के घर के ठीक बाहर गोली मारकर उनकी हत्या कर दी थी. 2015 में ही भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) के नेता गोविंद पनसारे की भी हत्या हुई थी. पनसारे को उनके घर के बाहर गोली मारी गई थी. और इससे पहले 2013 में पुणे शहर के अंदर हुई नरेंद्र दाभोलकर की हत्या का अंदाज भी कुछ-कुछ यही था. दाभोलकर सुबह की सैर पर निकले थे, जब बाइक पर आए हमलावरों ने उन्हें गोली मारी. सोशल मीडिया पर बड़ी तादाद में लोग लंकेश की हत्या पर शोक जता रहे हैं. कई लोगों का मानना है कि कलबुर्गी, पनसारे और दाभोलकर के मर्डर की ही कड़ी में गौरी लंकेश की हत्या हुई है.
She's not the first, and may not be the last in the list! Tomorrow, it could be you or me! Resist fascism! Rest In Power #GauriLankesh
CM ने कहा: गौरी लंकेश को कोई धमकी नहीं मिली थी
कर्नाटक के गृहमंत्री रामलिंग रेड्डी ने भी कहा कि कलबुर्गी और लंकेश की हत्या में अभी समानताएं दिख रही हैं. हालांकि जांच के बाद ही इसके बारे में पुख्ता तौर पर कुछ भी कहा जा सकेगा. पुलिस की 3 टीमों को इस मामले की जांच में लगाया गया है. मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने कहा कि 4 सितंबर को उनकी लंकेश से मुलाकात होने वाली थी, लेकिन वो नहीं आईं. CM का ये भी कहना है कि लंकेश ने उन्हें कभी कोई धमकी मिलने की बात नहीं बताई. CM ने पुलिस कमिश्नर से बात करके जांच का जायजा भी लिया. मुख्यमंत्री उनकी हत्या पर शोक जताने के लिए उनके घर भी जा रहे हैं.
दक्षिणपंथ और सांप्रदायिकता के खिलाफ लगातार लिखती रहीं
दिल्ली के पत्रकारिता संस्थान IIMC से पढ़ीं गौरी लंकेश ने कई अंग्रेजी अखबारों में भी काम किया. लंबे समय तक दिल्ली में काम करने के बाद वो वापस बेंगलुरू लौट गईं और 2005 में उन्होंने अपना अखबार शुरू किया. वो दक्षिणपंथ के खिलाफ लगातार लिखती रहीं. सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के खिलाफ भी वो काफी मुखर थीं. सांप्रदायिक राजनीति हमेशा उनके निशाने पर रही. वो जाति व्यवस्था की भी खुलकर मुखालफत करती थीं.
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In Kerala, the Story of Onam Prevails Despite the Sangh Parivar's Attempts to Project the Festival...
सामाजिक सद्भाव की हिमायती थीं
गौरी लंकेश फोरम फॉर कम्युनल हारमोनी (कर्नाटक कोमु सौहार्द वेदिके) की प्रमुख भी थीं. सभी धर्मों और मजहबों के बीच दोस्ताना ताल्लुकात कायम करने के लिए बड़ी शिद्दत से काम करती थीं. लिखती थीं. अलग-अलग कार्यक्रमों में शरीक होती थीं. लोगों के बीच जाती थीं. उन्हें समझाती थीं. उनसे बात करती थीं. कमोबेश हर स्तर पर ही कोशिश कर रही थीं.
आदिवासियों के लिए भी काफी काम किया
आदिवासियों और जंगल पर निर्भर जनजातीय समूहों के हक के लिए भी वो हमेशा मुखर रहीं. मुख्यधारा की पत्रकारिता जब इन वर्गों को बिसरा चुकी थी, तब लंकेश ने उन्हें अपनाया. आदिवासियों से जुड़े मुद्दे उनकी पत्रकारिता का अहम हिस्सा थे.
नक्सलियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश करती रहीं
उन पर नक्सलवाद से हमदर्दी रखने के आरोप भी लगे, लेकिन इसके बावजूद वो लगातार लिखती रहीं. गौरी लंकेश और उनके कुछ सहयोगियों की कोशिशों का असर था कि कुछ नक्सली अपने हथियार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल हो गए. लंकेश लगातार कोशिश करती रहीं कि नक्सली हथियार छोड़ दें. वापस लौट आएं. पिछले कुछ सालों से वो कन्नड़ पत्रकारिता की सबसे प्रभावी और दमदार आवाज बनी हुई थीं. निर्भीक, निडर और साहसी.
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415 Children Died In Gorakhpur Since August, But Cows Are CM Adityanath's Priority
पिता भी थे पत्रकार, अपने अखबार में कोई विज्ञापन नहीं छापते थे गौरी लंकेश के पिता पी लंकेश पत्रकार थे. कवि भी थे. 1980 में उन्होंने ‘लंकेश पत्रिके’ नाम का एक टैबलॉइड निकाला. इसकी खासियत ये थी कि इसमें विज्ञापन नहीं होते थे. पी लंकेश का मानना था कि कारोबारियों और सरकार से मिले विज्ञापन पैसा भले ही दें, लेकिन पत्रकारिता का गला घोंट देते हैं. कि इससे अखबार पर सच न लिखने का दबाव बनता है. मानहानि के केस में सजा भी मिली थी गौरी लंकेश भी अपने पिता की तरह उसूलों की पक्की थीं. उनका अखबार ‘गौरी लंकेश पत्रिके’ भी विज्ञापन नहीं छापता था. 2008 में लिखे एक लेख के लिए गौरी लंकेश पर आपराधिक मानहानि का केस भी चला. BJP के नेता प्रह्लाद जोशी और उमेश धुसी ने इस लेख पर आपत्ति जताई थी. नवंबर 2016 में उन्हें मानहानि का दोषी पाया गया. इसके एवज में उन्हें 6 महीने की जेल हुई. जिस दिन सजा हुई, उसी दिन उन्हें जमानत भी मिल गई.
FollowShocked to hear that the brave Journalist-Activist Gauri Lankesh has been shot dead in Bengaluru. Culprits should be nabbed at the earliest.
हिंदुत्व-जातिवादी राजनीति की बखिया उधेड़ती थीं
गौरी लंकेश धर्मनिरपेक्षता, दलित अधिकार और महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काफी मुखर थीं. आलोचना करते हुए वो खुद को बांधती नहीं थीं. कोई लाग-लपेट नहीं. कोई डर नहीं. सांप्रदायिकता और कट्टरपंथी राजनीति की तो बखिया उधेड़ देती थीं. फेसबुक और ट्विटर पर भी वो लगातार लिखती रहीं. जिन चीजों की वो मुखालफत करतीं, उन पर लिखते हुए कभी नर्मी नहीं दिखातीं. उन्हें जानने वाले कहते हैं कि वो काफी भावुक थीं.
कन्हैया को अपना बेटा कहा था
2016 में JNU कांड के बाद कन्हैया कुमार का भाषण सुनकर लंकेश ने उन्हें बेंगलुरू आने का न्योता दिया. सोशल मीडिया पर उन्होंने कन्हैया को अपना बेटा बताया. कन्हैया और उमर खालिद के साथ उनकी एक तस्वीर भी काफी वायरल हुई थी.
Follow@AtishiMarlenaTime to read lines of Pastor Martin Niemoller on Nazi Germany and remember if we don't speak out now, it may soon be too late#GauriLankesh
पसंद करने वाले कई थे, लेकिन नापसंद करने वालों की भी कमी नहीं थी
लंकेश के परिवार में उनकी मां, छोटी बहन कविता लंकेश, भाई इंद्रजीत हैं. इंद्रजीत अपने पिता द्वारा शुरू किए गए लंकेश पत्रिका को भी संभालते हैं. उन्हें पसंद करने वाले कई थे तो नापसंद करने वालों की तादाद भी कम नहीं थी. लोग उन्हें देशद्रोही कहते थे. उन्हें नक्सलियों का हमदर्द बताते थे. हिंदू विरोधी भी कहते थे. लेकिन ये तमाम आरोप उन्हें चुप नहीं करा सके. हां, अब वो मर चुकी हैं. उनका कोई नया लेख अब नहीं आएगा. लेकिन सोशल मीडिया और तमाम अखबार उनके बारे में लिख रहे हैं. अब तक गौरी लंकेश लिखती थीं. अब उनके बारे में लिखा जा रहा है.
साभार: दलल्लनटॉप