26 फरवरी, 1978. खेतड़ी के एक मैदान में 2 हजार लोग इकट्ठे हुए. बॉलीवुड के कुछ स्टार्स परफॉर्म करने पहुंचे थे. शामियाना लगा हुआ था. भीड़ ज्यादा होने की वजह से सब लोगों को एंट्री नहीं मिल सकी. जो अंदर नहीं घुस पाए, वो मैदान के बाहर से अंदर पत्थर फेंकने लगे. जब पुलिस ने एक्शन लिया, किसी ने पावर सप्लाई बंद कर दी. लाइट चली गई. भीड़ बिखर गई. सब डिवीज़नल मजिस्ट्रेट और डिप्टी SP ने 120 पुलिस वालों के साथ मिलकर औरतों और बच्चों को पास के दीनबंधु सिनेमाघर में सुरक्षित पहुंचाया.
लेकिन अगले दिन नवभारत टाइम्स अख़बार में एक चिट्टी छपी. जिसमें लिखा था,
‘ये लिखते हुए मेरा सर शर्म से झुक रहा है कि कुछ लोग इतने घिनौने होते हैं कि उन्हें इंसानियत पर धब्बा कहा जा सकता है. उस दिन मांओं और बहनों का रेप हुआ. वो इस स्थिति में थीं कि शरीर पर पेटीकोट तक नहीं बचा था, जिसमें वो घर जा सकें. जाने कितनी लड़कियां गायब हो गईं और अगली सुबह घर पहुंचीं.
[…]
मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सब डिवीज़नल मजिस्ट्रेट और डिप्टी SP इतने चुप क्यों हैं. मैंने देखा कैसे राजस्थान के बड़े-बड़े अधिकारी चुपचाप रेप का ये तमाशा देखते रहे.’
चिट्ठी भेजने वाले थे फरीदाबाद के हरजीत सहगल ने. चिट्ठी की हेडिंग थी ‘वो शर्मनाक रात’ जो एडिट पेज के ‘नज़र अपनी अपनी’ कॉलम में छपी थी.
पूरा वाकया झुंझुनू के एक लोकल साप्ताहिक ‘ताल-मेल’ ने उठा लिया. 12 मार्च के इशू में विस्तार से खबर छपी. जिसके बाद झुंझुनू के अख़बार नव ज्योति ने खबर को छापा. जिससे हरजीत सहगल की बात धीरे-धीरे सच साबित होने लगी.
जब खबर आग पकड़ने लगी, हिंदुस्तान टाइम्स के फ्रंट पेज की लीड स्टोरी बनी. 17 मार्च के दिल्ली एडिशन में खबर ‘जयपुर के स्पेशल करेसपॉन्डेंट’ की बाइलाइन से छपी. और देश में हंगामा मच गया.
हिंदुस्तान के जयपुर स्पेशल करेसपॉन्डेंट भंवर सुराना ने कहा कि उन्हें मालूम ही नहीं है अखबार में स्टोरी किसने की है. उन्होंने कहा, ‘मेरे पास सुबह से 300 फ़ोन आ चुके हैं. अच्छा हुआ खबर मैंने नहीं भेजी थी. वरना मेरी नौकरी चली जाती.’
अंग्रेजी अख़बार हिंदुस्तान टाइम्स के स्पेशल करेसपॉन्डेंट एच. सी. माथुर ने कहा कि उन्हें पता ही नहीं था ऐसी कोई खबर गई है.
खबर कितनी सच है, कितनी झूठ, इसका पता करने के लिए ‘कुलदीप नैय्यर कमिटी’ बनाई गई. हिंदुस्तान के एडिटर चंदूलाल चंद्राकर ने कमिटी को बताया कि स्टोरी को एच. सी. माथुर ने फाइल किया था. लेकिन बाइलाइन में नाम किसी का नहीं था. असल में हिंदुस्तान के रिपोर्टर ने नव ज्योति के रिपोर्टर से मिलकर खबर की. कुलदीप नैय्यर कमिटी को इस बात का कोई सबूत नहीं मिला कि नव ज्योति का रिपोर्टर घटना के दौरान वहां मौजूद था.
बड़ी बात ये है कि नवभारत टाइम्स के एडिटर सच्चिदानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ ने शायद ध्यान नहीं दिया. लेकिन जिस बंदे ने चिट्ठी लिखकर देश भर को ये खबर दी, वो आदमी फरीदाबाद का था. खेतड़ी से 120 किलोमीटर दूर. जांच के बाद पता चला कि जिस बंदे ने चिट्ठी भेजी थी, वो असल में कोई है ही नहीं.
मुद्दे को विधानसभा में उठाया गया. कांग्रेस से विधायक RN चौधरी ने विधानसभा को बताया कि दीनबंधु सिनेमाघर से 10 किलो वजन के बराबर फटी हुई ब्रा मिली हैं. चीफ मिनिस्ट भैरो सिंह शेखावत ने सारे आरोप खारिज कर दिए. उन्होंने कहा कि उन्हें खबर 7 मार्च को नवभारत टाइम्स से पता चली. राजस्थान के लेबर और ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर केदारनाथ शर्मा का कहना था कि वो 4 मार्च को खेतड़ी गए लेकिन उनसे किसी ने कोई शिकायत नहीं की. वहीं खेतड़ी म्युनिसिपैलिटी के चेयरमैन और जनता पार्टी के मेंबर नंदकिशोर शर्मा का कहना था कि उन्होंने मुख्यमंत्री भैरो सिंह शेखावत को टेलीग्राम से पूरी घटना के बारे में बताया था, 1 मार्च को ही.
जहां नव ज्योति ने बताया कि 100 औरतों का रेप हुआ, उसके विरोध में खड़े राजस्थान पत्रिका ने लिखा कि ऐसा कुछ भी नहीं हुआ था. औरतों और बच्चों को सुरक्षित घर पहुंचाया गया.
राजस्थान पत्रिका की सिंपथी जनता पार्टी से थी. जनता पार्टी की सरकार उस समय केंद्र में थी. प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई थे और अपोजिशन में इंदिरा गांधी थीं. नव ज्योति और कुछ इक्के-दुक्के अख़बार जो कांग्रेस आई से सिंपथी रखते थे, ने रिपोर्ट किया कि 100 से ज्यादा औरतें मोलेस्ट हुईं.
आज तक मालूम नहीं पड़ पाया कि असल घटना क्या थी. लेकिन अगर रेप की खबर सच थी, तो बड़े ही शानदार तरीके से राजनीति के दम पर देश के इतिहास का एक काला दिन मिटा दिया गया.
साभार: द लल्लनटॉप