इस श्लोक का भावार्थ इस प्रकार है। ब्रह्मांड में अखंड स्वरूप उस प्रभु के तत्व रूप को मेरा नमन है जो मेरे सामने प्रकट होता है साथ-साथ आत्मज्ञान का दर्शन कराता है। जो अनोखा है जो इस ब्रह्माण्ड में समाहित है जो चर और अचर में बदला हुआ है। उस प्रभु के परम तत्व स्वरूप को मैं नमन करता हूँ जो मुझे साक्षात् आत्मज्ञान का दर्शन कराता है। गुरु स्वरूप उस तत्व को मेरा शत-शत नमन है वही गुरु ही पूर्ण परम तत्व है। ऐसे परम तत्व स्वरूप गुरु को मेरा नमन है।
ज्ञान की जोत जलाते हैं,
मन का तमस मिटाते हैं,
बन दिया पथ दिखाते हैं,
वे शिक्षक ही तो होते हैं।
संघर्षों की चट्टानों पर,
लकड़ी की बेंचों पर,
सपने में रंग भरते हैं,
नव विश्वास जगाते हैं।
शब्दों में है जादू भरते,
सपनों को पंख लगाते ,
हर संघर्ष में संग होते
वे साथी धैर्य बन जाते ।
सिर्फ वो पाठ्यपुस्तक,
हमको ही न सिखाते हैं,
जीवन का हर एक पन्ना,
समझा अमल कराते हैं।
शब्दों में नहीं है सामर्थ्य,
उनका सम्मान बताने की,
उनके अंदर ममता में बसे
क्षमता हर कली खिलाने की ।
शिक्षक दिवस पर नमन है ,
उन गुरुजनों को बारंबार,
जिनसे हमने सीखा हुनर,
जीवन के हर एक सार।
शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ उनको नमन 🙏🙏