भारत में यह कानून अभी हाल ही में लागू किया गया है । इसका मूल उद्देश्य दुर्घटना के बाद ड्राइवर को भागने से रोकना है । इस नए कानून से ट्रक ड्राइवर व ट्रांसपोर्ट यूनियन ने देशव्यापी हड़ताल को शुरू कर दिया है ,जिसके कारण ट्रक व टैंकर ड्राइवरों का 3 दिन तक विरोध प्रदर्शन व धरना चला। इससे देश के कई भागों में पेट्रोल, डीजल आपूर्ति समस्या पैदा हो गई ।
यह हिट एंड रन कानून आखिर है क्या?
इस हिट एंड रन कानून को ब्रिटिश कालीन दंड संहिता का रिप्लेसमेंट कहना अधिक उचित होगा । अगर किसी ट्रक ड्राइवर की लापरवाही से चलती गाड़ी से कोई गंभीर सड़क दुर्घटना होती है और वह पुलिस या किसी संबंधित अधिकारी को घटना की जानकारी दिए बिना निकल कर भाग जाता है तो दंड का भागीदार होगा , जिसके तहत 10 साल तक की जेल 7 लाख रुपए जुर्माना का प्रावधान रखा गया है ।
पहले हमारे देश में ऐसा कोई कानून नहीं था, ऐसे मामलों में कार्रवाई आईपीसी की धारा 279 ,304A, 338 का प्रयोग किया जाता था । जिसमें अधिकतम 2 साल की जेल सजा का प्रावधान था।
इस कानून के लगने से ट्रक ड्राइवर दुर्घटना की जगह छोड़ नहीं सकते हैं ,घायल को अस्पताल तक पहुंचाने में उन्हें हिंसक भीड़ छोड़ेगी नहीं । दूसरे 10 साल की जेल और 7 लाख का जुर्माना उनके लिए बहुत ही अधिक होगा ।
इससे पहले से चली आ रही ट्रक ड्राइवरों की कमी और भी अधिक बढ़ जाएगी। भारतीय न्याय संहिता की धारा 104 में हिट एंड रन कानून को उल्लेखित किया गया है । कानून में किए गए संशोधन से देश भर में चक्का जाम आन्होआन्दोलन हो रहे हैं । महाराष्ट्र उत्तर प्रदेश मध्य प्रदेश में पेट्रोल की बढ़ती समस्याओं का सामना करने से आम आदमी का जनजीवन प्रभावित हो रहा है ।
मोटर वाहन अधिनियम 1988 भी हिट एंड रन के मामलों में भी लागू होता है। इस कानून में धारा 161, 134(ए) और 134(बी) हिट एंड रन के मामलों से संबंधित हैं।
धारा 161 में हिट एंड रन के पीड़ितों को मुआवजे का प्रावधान है जो मृत्यु के मामले में 25,000 जबकि गंभीर चोट के मामले में 12,500 है।
धारा 134(ए) के अनुसार, दुर्घटना करने वाले ड्राइवर को घायल व्यक्ति को तुरंत चिकित्सा सहायता प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
वहीं धारा 134(बी) में जिक्र है कि चालक को उस दुर्घटना से संबंधित जानकारी यथाशीघ्र पुलिस अधिकारी को देने की आवश्यकता है अन्यथा चालक को दंडित किया जायेगा ।
मौजूदा समय में हिट एंड रन के मामलों में सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि अपराध स्थल पर अपराधी के खिलाफ कोई भी प्रत्यक्ष सबूत नहीं होता है। इस वजह से पुलिस अधिकारियों के लिए जांच को आगे बढ़ाना और अपराधी को ढूंढना बेहद कठिन होता है। इनमें से ज्यादातर अपराधी भाग जाते हैं ।
दूसरी बात गवाहों पर जांच निर्भर होती है । वे भी मदद करने से डरते हैं क्योंकि आम आदमी किसी भी तरह के कानूनी दांवपेंच में कोर्ट-कचहरी के चक्कर में फंसना नहीं चाहते हैं।
दूसरी तरफ हमारे गृहमंत्री श्री अमित शाह जी ने कहा है कि, जिन ड्राईवरों से दुर्घटना हो जाती है और वे खुद ना केवल पुलिस को इसकी सूचना देते है बल्कि पीड़ित की जान बचाने हेतु उसे अस्पताल लेकर जाते हैं, उनके लिए उदारता बरती जायेगी ।
देखते हैं आगे होता क्या है ??