यह कविता सैनिकों के बलिदान, साहस, और समर्पण को समर्पित है।
धरती पर बिछी है चूनर लाल,
वीर जवानों होते देश की ढाल
सैनिक ही, मातृभूमि का मान
रक्त का रंग यहाँ है बेज़ुबान।
हवा में गूँजे उनकी शौर्यगाथा,
हर बूँद में है एक नई कथा,
माँ के आँचल को छोड़ चले ,
तिरंगे का स्वप्न वे सँजो चले।
धूप,बारिश में रहते हैं अडिग,
हर पर्वत, हर नदी के पार,
क़दम उनके हैं दृढ़ संकल्पित,
देश रक्षार्थ तन-मन समर्पित।
रात की ठंडक या धूप का ताप,
नहीं डिगते,नहीं डरते, न संताप
हाथ में बंदूक, दिल में है विश्वास,
धरती माँ की सुरक्षा उनकी आस।
शहीद होकर वे अमर हो जाते हैं,
हर दिल की यादों में बस जाते हैं,
उनकी कुर्बानी का रंग न खोने पाए,
देशी माटी में लाल अमर हो जाए।
स्वरचित डॉ. विजय लक्ष्मी