समय और जीवन का नाता अनमोल होता है । यहाँ एक प्रेरक कविता प्रस्तुत है। यह कविता हमें इस बात की याद दिलाती है कि समय और जीवन दोनों ही निरंतर आगे बढ़ते रहते हैं, और हमें वर्तमान में जीते हुए जीवन को पूरी तरह से अनुभव करना चाहिए।
समय है वे धारा, जो बहती जाए,
जीवन एक कश्ती, संग में बहाये।
पल की कीमत,जो समझ न पाए,
खड़ा किनारे,यों देखता रह जाए।
कल की चिंता, भविष्य का सपना,
इनमें उलझे, न जी पाए अपना।
आज की महक, पल की ये सुगंध,
समेट लें इसे, अनमोल असगन्ध।
समय जो बीते, वो लौटता न फिर,
राहें बदलतीं, पर मंज़िल रहे स्थिर।
जीवन की चाल में, जो संग चले,
वही पाता है सुख, वही आगे बढ़े।
समय की कर कद्र ,पल को जी लें,
हर क्षण में नए सपनों को सी लें।
जीवन एक सफ़र,इसका अंत नहीं,
समय संगी, इसका कोई छंद नहीं।
इसलिए जी लें हँसते-हँसते, यहाँ,
समय ना रुकेगा, बस बढ़ेगा जहाँ।
जीवन इस पल है वे उस पल न हो,
समय आज अपना कल बेगाना हो।
स्वरचित डॉ. विजय लक्ष्मी