आज की पीढी तो बस अंग्रेज हो चुकी
है । सच कहें तो इसमें उनका दोष भी नहीं है । आज का प्रत्येक माता-पिता बच्चे के गुड मार्निग बोलने पर फूल कर कुप्पा हो जाते हैं । जब वही बड़े में शटअप बोलते हैं तब नींद टूटती है ।
आज का सबसे दुखद पहलू जब किसी बच्चे से बाइस सत्ताइस कोई भी गिनती पूंछिये वह पूंछेगा मीन्स वही ट्वेन्टी टू य् ट्वेन्टी सेविन फट से बता देगा । अब तो बहुत से बच्चों को रोज के सामान्य शब्दों का ज्ञान न रहा ।कम से कम हमे घर में अपनी मातृभाषा या हिन्दी में बात करनी चाहिए ।बच्चा अनभिज्ञ न रहे विदेश में हंसी का पात्र न बने दिया के तले अंधेरा।आज तो विदेशी हिन्दी सीखने के लिए लालायित हो रहे हैं ।
किसी भी भाषा की जानकारी होना ,सीखना बहुत अच्छी बात है । पर अपनी राष्ट्रभाषा हिन्दी व बोलने वाले को ही हिकारत भरी नजर से देखना सबसे लज्जा की बात है ।
इसी सम्बन्ध में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र जी का कथन याद आता है ।
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"निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल, बिन निज भाषा ज्ञान के, मिटै न हिय के सूल'।
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"मातृभाषा की उन्नति बिना किसी भी समाज की तरक्की संभव नहीं है तथा अपनी भाषा के ज्ञान के बिना मन की पीड़ा को दूर करना भी मुश्किल है" ।
हिन्दी जो अपने पूर्वजों की भाषा रही है गजब की मिठास व अपनत्व लिये । इसमें बड़े छोटे के लिए अलग सम्बोधन। छोटों को तुम व बडों को आप, भवान(संस्कृत)आदि । अंग्रेजी में सबके लिए you.रिश्तों के सम्बोधन में कोई लगाव सम्मान का भाव नहीं, हर कोई आन्टी, अंकल। हिन्दी इतनी समृद्ध भाषा है कि शब्द मे ही गरिमा छिपी है ।बुआ ,फूफी या फयी पिता की बहन, मासी मां की बहन । ये तो कतिपय उदाहरण हैं ।
चलिये ये सब छोड़ मैं मुद्दे की बात पर आती हूं ।
निया स्कूल से आते ही मुंह फुला कर बैठी थी मैने कहा क्या हुआ बेटा ? क्या दादी जी मुझे बहुत गुस्सा आ रहा
है "।
आखिर किस बात पर ?
"मेरा बहुत सारा होमवर्क करने को पड़ा है मम्मा आफिस से लेट आयेंगी । तो क्या हुआ चलो मैं करा दूं । नहीं आप तो हिन्दी की साइड से पढ़ीं हैं आप तो इंग्लिश में बात भी नहीं कर पातीं" ।
ऐसा नहीं था कि मैं अनपढ थीं मैंने संस्कृत से पोस्ट ग्रेजुएट कर पीएचडी की है। पर कभी प्रोफेशनल काम नहीं किया। अपने बच्चों की पढ़ाई खुद कराती थीं वह कोचिंग का जमाना भी नहीं था ।
पहले हिन्दी मीडियम की पढ़ाई थी ।हां मैं अंग्रेजी धाराप्रवाह नहीं बोल पाती थीं पर समझती सब थीं । क्योंकि ग्रेजुएशन में मेरे सब्जेक्ट अंग्रेजी ,हिन्दी व संस्कृत भी थे । बेटा भी समझाता, "देखो निया बेटा!! हिन्दी अपनी मातृभाषा है ये तो सम्मान की बात है इसमें शर्म कैसी ? मम्मी जी आप इसके स्कूल में जो भी प्रश्न निया की पढ़ाई के सम्बन्ध में पूछना या सजेस्ट करना चाहें हिन्दी में बेझिझक अपनी बात करें ।
मैं कोई अवसर देख रही थी जब पोती हिन्दी भाषा को दिल से सम्मान दे सके ।
एक बार मैं बच्चों के साथ उसके स्कूल फंक्शन में गयी पर पहले मैने स्कूल का माहौल समझना चाहा बाद में कुछ बात करने की सोची । मुझे ये बात समझ में आईं कि 2-3 टीचर्स की नजर में हिन्दी भाषी होना हीनता या मिडिल क्लास का होना पर्याय था ।
अब ऐसा भी क्या हिन्दी विषय की कक्षा में भी गुड मार्निग या मे आई कम इन जैसे वाक्य बोले जायें । मेरे विचार से अच्छा होता अंग्रेजी माध्यम के बच्चों को इस घंटे में अपने संस्कार व संस्कृति के अभिवादन के शब्द सिखाये जाते,प्रणाम सुप्रभात आदि ।यही तो 1घंटी हिन्दी से बच्चों से साक्षात्कार कराने का अवसर है ऊंची कक्षा में तो सारा कोर्स अंग्रेजी में ही होना है ।
कोशिश ये होनी चाहिए थी जो बच्चे गुजराती भाषी हैं उन्हें भी थोड़ी हिन्दी और संस्कृत के विषय में जानकारी देनी चाहिए । हमारे जमाने में कक्षा 6 से हिन्दी की किताब के पीछे 10 पाठ अनिवार्य संस्कृत के होते थे ।सबको पास भी करना होता था। जिससे यही बच्चे बड़े होकर दूसरे देश जाने पर अपनी राष्ट्र भाषा बोलते समय गर्व महसूस कर सकें व करा सकें ।
अगर अंग्रेजी माध्यम के स्कूल में हिन्दी का एक शब्द बोलने में फाइन देना पड़ता है तो हिन्दी भाषा की कक्षा में एक शब्द अंग्रेजी का बोलने में फाइन क्यों नहीं ?
कोविड का समय था बच्चों को आनलाइन पढ़ाई कराई जा रही थी । चलते-फिरते मेरे कान में भी मैडम की आवाज पहुंच जाती। एक दिन अंग्रेजी की क्लास चल रही थी । टीचर ने बच्चों को बताया love शब्द में ल कंठ की मदद से बोला जाता है । मुझे ये बात खटकी क्योंकि "अकुहविसर्जनीयानां कण्ठः "होता है अ ,आ ,क वर्ग, ह और विसर्ग आदि कण्ठ से बोले जाते हैं ।
"लृतुलसानां दन्ताः" ----लृ ,त वर्ग ,ल और स वर्ण दांत की सहायता से बोले जाते हैं।
मैंने excuse me कहते हुए अपनी बात रखी पर अंग्रेजी टीचर ने कहा नहीं निया की दादी जी आप गलत हैं अंग्रेजी में "ल" कण्ठ से बोला जाता है । मैने कहा, वर्ण के उच्चारण स्थान, क्या अंग्रेजी क्या हिन्दी या अन्य भाषा सभी में एक से होंगे कुछ विशेष शब्दों को छोड़कर। दो + दो हिन्दी में चार होगा तो क्या अंग्रेजी में 2+2 = 4 न होकर कुछ दूसरा होगा 5 या 6 ।
उन्होने कहा मैं आपकी बात कैसे मान लूं। मैने कहा ठीक है न मानिये आप अपनी विषय विशेषज्ञ से बात करा दीजिए या खुद करके बताइये तब वे बोलीं मैं डिस्कस कर आती हूं ।
इतने में मेरी पोती आकर बोली, "आपने मेरी मैम से ऐसा क्यों बोला? हिन्दी वालों को समझ नहीं आती क्लास की सारी लड़कियां आपके कारण मेरा मजाक बनाएगी और जोर-जोर से रोने लगी "। मैने कहा ,ऐसा कुछ न होगा पर वे मेरी बात सुनने को तैयार ही नहीं थी।
तभी इनकी मैम आईं बोलीं," I am so sorry mam. मुझे ये बात नहीं मालुम थी । मैने कहा," कोई बात नहीं पर आप बच्चों के सामने अपनी राष्ट्रभाषा के बारे में ऐसे विचार रखतीं हैं । ऐसा होता तो आज विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ जैसे लोगों को कोई जानता ही नहीं "।
किसी भी भाषा के सीखने, जानने में कोई बुराई नहीं पर अपनी हिन्दी के सम्मान को कमतर आंकने की कीमत में नहीं ।
आप ही बताइए क्या आप एक अंग्रेज को देखकर अपने पिता को पहचानने से इन्कार कर देंगी या शर्म महसूस करेंगी क्योंकि वे अंग्रेज नहीं या अंग्रेजी नहीं आती।
तभी पोती हंसती हुयी बोली, "वाह मेरी दादी जी और दादी जी की हिन्दी भाषा दोनों सर्वश्रेष्ठ । एक दिन स्कूल आइएगा सहेलियों से मिलाऊंगी" ।
मैंने भी उसी अंदाज में कहा, "मैं तो अंग्रेजी में बोल न पाती तब कैसे चलेगा" ?
"चलेगा क्या दादी जी दौड़ेगा" ।निया बोली ।
अब तो पोती की सहेलियां व टीचर सभी पहचानतीं हैं । पोती भी खुश हो सिखायी तुकबन्दी मेरे साथ गाने लगती है ।कहती है ।
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सब भाषाओं की नानी देववाणी संस्कृत
सरल-सहज,प्यारी-न्यारी हिन्दी परिष्कृत
मातृभाषा , दिली अभिव्यक्ति है हिन्दी
भारत माँ के माथे की शोभा हिन्दी बिन्दी
पूर्वजों का स्नेहमय आशीर्वाद है ये हिन्दी
एकता और अखंडता की पहचान हिन्दी
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बच्चे तो सरल ,सहज होते हैं हम चाहे जिस रंग में रंग दे । कच्ची माटी होते हैं ।चाहे जैसी मूर्ति गढ दें । बचपन को एक नयी दिशा ,अपने देश प्रेम का भाव देना व पहचान कराना हम सभी का परम कर्तव्य है जिससे बाहर जाकर भी वे भाषा का सम्मान कर सकें व करा सकें।
आइए इसी संकल्प के साथ आप सभी को हिन्दी दिवस की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई व शुभकामनायें ।🙏🙏💐💐
स्वरचित डॉ.विजय लक्ष्मी