राहें तक रही सूनी आंखें अपने लाल की,
घर-घर चर्चा हो रही वीर के कमाल की।
फर्ज निभा शीश दिया अपने भाल का,
आज ऋण चुका तेरी मां की कोख का।
जान हथेली पर रख अपना कर्म निभाया
दिया मातृभू को बचन ,पूरित कर आया।
21तोपों की सलामी से विश्व गूंज रहा है,
देश के सच्चे सपूत जय घोष हो रहा है ।
मां तुझे नमन,तेरा बेटा चैन से सो रहा है,
द्वार पे कर प्रणाम,अंतिमविदा ले रहा है।
पत्नी द्वार पर खड़ी कर रही तेरी प्रतीक्षा,
गम या खुशी का शमा कैसे ले रहे परीक्षा
तुम शहीद हुए कर्तव्य पथ की वेदी पर,
रंग छोड़ जीवन के मैं भी शहीद हो गई।
मेरी सूनी मांग में कौन सिंदूर साजेगा,
मेरे साथ निभाए वादे कौन पूरे करेगा ?
कफन तिरंगे लिपटा किस्मत वाले का,
होता जग नाम किसी हिम्मत वाले का।
आते देख फौजी को गांव ,मां घबराती,
क्या फिर किसी लाल की अर्थी आती।
देख समर्पण बेटे का छलके हिय आंसू,
पिता किंकर्तव्यविमूढ़ ,लेते आज उसासू।
दादीमाँ लाठी टेक,ठक-ठक कर आती है
नेत्रहीन न जाने,बुढ़ापे की लाठी,जाती है
पड़ोसी भी भीगी कोरों कर रहे इंतजार,
गौमाता मुंह छुपा आंसू बहा रही लाचार।
भाई की याद में सजल नेत्र धुंधला रहे हैं,
राखी को याद कर रक्षासूत्र सहला रहे हैं।
पत्नी पल्लू की ओट से पेट देख रही है,
अजन्मे शिशु को सहला कुछ बता रही है
कैसी दारुण व्यथा दुख भी सहम रहा है,
जल भी कोरों का साथ छोड़ सूख रहा है
7साल की बेटी कुछ समझ ना पा रही है
कैसा उत्सव घर,याद बापू की आ रही है
सारा नजारा गमगीन चित्रकार बता रहा,
हृदयभाव भेद दिल है चीत्कार कर रहा।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी