सच्चाई छुप नहीं सकती झूंठ के उसूलों से,
खुशबू आती नहीं कागजी नकली फूलों से।
सत्य हो सकता है किंचित ओट से बाधित ,
जैसे सूर्य छिपता बादली गोद में मुकुलित।
वैसे ही सत्य होता नही कभी कहीं पराजित,
कितना भी करे सच को झूंठ तापित-श्रापित।
झूंठ की बदली के छिन्न-भिन्न होते है उदित,
चारों दिशायें सत्य के खुमार से होतीं लोहित।
छुपे सच की गर्जना सिंहनी हुंकार सी राजित,
झूंठ लांछित धुंध,कुहासी,आवरण हो वाष्पित।