जीवन धारा में धीरे-धीरे बहते जाते,
संघर्षों में,हम सब जीते खाते ही रीते।
मन में बसी घुटती ,अशांति की चिंता,
मुक्ति की ओर , मृगमरीचिका रिक्ता।
आत्मा की जरूरत है मन की श्रान्ति,
बंधन से पा छुटकारा पायें नव क्रान्ति।
आत्मा का मार्ग,सत्य ज्ञान की तलाश,
इस खोज में बसे,एक प्यास की आश।
मुक्ति बोधकी दिशा,सदैव बढ़ती आगे,
प्रकाश को देख अंधियारा ,ज्यों भागे।
अपने आप को पाकर, मिलती मुक्ति,
स्वतंत्रता की,ऊंचाई में सुभाषित सुक्ति।
मुक्ति का अर्थ है ,आत्मा की स्वतंत्रता,
सारे बंधनों को काट ,पा लें चैतन्यता ।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी