हमने बना दिया कैसे हिंदी को मेहमान ,
घरवालों को दें क्या एक दिनी सम्मान ।
हिंदी बिना हम गूंगे बहरे भाषा ही शान,
हो सके तो रोज ही दें अपनों को मान ।
बाहर जा विदेश में गर्व से ही हिंदी बोलें,
नौकर हो या ऑफिसर हिंदी से ना डोले।
हिंदी से भारत सृजता ,प्यारा हिंदुस्तान,
हिंद देश के वासी हम हिंदी है समाधान।
क्यों हमने इसे बना दिया घर में बेगाना?
नाप रहे दुनिया ले अंग्रेजी का पैमाना ।
जब हम खुद करेंगे इसका ऐसे अपमान,
कौन ठौर देगा हमको मिलेगी न पहचान।
युगों की यह गाथा संस्कृति अमर बनाती,
अपने मृदु बोलों से सबका मन हर जाती।
बच्चा जब बोले मुख से माँ ही सृजता है,
धीरे-धीरे भावाभिव्यक्ति कुछ रचता है ।
आज भी हिंदी राजभाषा तक सीमित,
राष्ट्रभाषा पहुंचने की राह है अपरिमित।
आज गूगल को हिंदी से मिली नई शान,
नेट में सर्वाधिक यूजर हिन्दी अभियान।
अक्षर-अक्षर में आत्मपरमानंद है बरसे,
फिर भी हिंदी स्वघर में बोलने को तरसे।
मजबूरी नहीं हिंदी यह मजबूत धुरी है,
सब भाषा इसके बिना आज अधूरी है।
वर्ण-वर्ण में मृदुता निश्छलता भरी हुई,
अंग्रेजी के बट पुट जैसी नहीं गढ़ी हुई।
ना छलछिद्र,न अक्षर साइलेंट चक्कर,
हिंदी तो बस हिंदी है सब का समस्तर।
न कोई अस्तित्व खुद से ही जुदा किया,
हमने हिंदी को महज बिन्दु बना दिया।
देखो इसने अपनों से ही विषपान किया,
कैसे हैं नादान हम फिर भी होंठ सिया।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी