यह कविता इस बात को व्यक्त करती है कि कैसे मुस्कानें अक्सर छिपी हुई भावनाओं या गहरी सच्चाइयों को ढक देती हैं। आज का इंसान अंदर से इतना परेशान है लेकिन ऊपर से झूठी मुस्कान का लबादा ओढ़े रहता है, अंदर से उसका दिल रोता है पर ऊपर से होठों पर हंसी रहती है । दिखावा इतना है कि हम अपने दुख दर्द वेदनाओं को किसी से भी व्यक्त नहीं कर पाते लोग क्या कहेंगे लोग क्या कहेंगे के चक्कर में आज अंदर के दुख-दर्द नहीं व्यक्त कर पाते हैं इसको नकली मुस्कान कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी मुझे आज इस संदर्भ में एक गाना याद आ रहा है जो बहुत ही हिट हुआ था
चेहरे पर कई चेहरे लगा लेते हैं लोग खुद को खुद में ही छुपा लेते हैं लोग।
मुस्कानें झूठी हैं, आंखों में छिपा दर्द है,
चेहरे पर हंसी, दिल बसता दुख सर्द है।
बातों में मिठास है, पर दिल में हलचल,
सच्चाई कहां छिपे, छलकते अश्रु जल।
दिखावे की दुनिया में, मुस्काते दिखते ,
पर गहरी उदासी के , रंग भी हैं बहते।
सपनों में खोए हैं, आंखों के ये इशारे,
पर भीतर टूटे हैं, कई अनकहे सहारे।
मुस्कानें झूठी,हंसी का चढा आवरण,
जो दर्द छिपाती ,जीवन के समरांगण।
हर चेहरे की कहानी,है अकथ सच्चाई,
मुस्कानें झूठी ,दिल मे वेदना है गहराई
स्वरचित डॉ. विजय लक्ष्मी