ये कच्चे धागे ही नहीं, स्नेह का अटूट बन्धन हैं।
प्रेम के इस धागे से पल मे होता हार्दिक गठबन्धन है ।
कच्चे धागों से हुमायूं को कर्मवती,बना भाई आई थी ।
फिर आजीवन उसने भी, रक्षा कवच जो पाई थी ।
तोड़े से न टूटे,दूर रहे पर न छूटे, ये ऐसा बन्धन है।
श्रावणपूर्णिमा के दिन आये, रक्षाबन्धन पावन है।
राखी धागों का त्यौहार नहीं, भाई बहन का नाता है ।
इस नाते को ही याद दिलाने, यह राखी पर्व आता है ।
कच्चे धागे हैं प्रतीक, जीवन की नश्वर क्षणभंगुरता का ।
कमजोर अनिश्चिता वाले फिर भी भान कराते गंगाजल का ।
कच्चे धागे सी सांसे आते-जाते भी कुछ कहती हैं।
स्नेह प्यार का लेप कर ये मजबूत राह नयी देती हैं।
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी