सपनों की धरती, बांग्लादेश की भूमि
फूलों की खुशबू है , नदियों की ऊर्मि
पर सत्ता के खेल में, कभी चिंगारी सी
नफरत की लहरें,उफनती अंगारों सी
नये संघर्ष में उठती पुरानी कहानियाँ
जनता के हौसले,नेताओं की टोलियां
आशा और निराशा के बीच झूलते हुए
खो जाते हैं रास्ते, यों भ्रम फैलाते हुए
सत्ता की परतें, कहीं कालिख से रंगी,
तो कहीं खून के छींटे, झूठी दंभ बंधी
लोकतंत्र की आड़ में,खड़े तीखे सवाल
कौन बोले सही यहां,कौन छुपे दलाल?
सड़कें सुनसान,आवाजें चुप्प नीरवता
समाज की धड़कनें गुमनाम अराजकता
भविष्य की धुंध में, उम्मीद की किरण
सच्चाई और न्याय का,बना रहे मिश्रण
बांग्लादेश की इस कथा को समझते हैं,
इतिहास की धूल साफ कर ही देखते हैं
ताकि नये प्रभात की सुनहरी रोशनी में
बेहतर भविष्य की दिशा पा सकें धुंध में
स्वरचित डा.विजय लक्ष्मी