अमेरिका में सात हज़ार मुस्लिमों की नौकरी चली जाएगी. इस खबर को सुनकर उन लोगों को खुश हो जाना चाहिए जो भारत की शरण में आए रोहिंग्या मुस्लिम को म्यांमार भगा देना चाहते हैं. नौकरी इसलिए चली जाएगी, क्योंकि अमेरिका के राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने ओबामा शासन के उस एमनेस्टी प्रोग्राम को रद्द कर दिया, जिसके तहत अवैध तरीके से अमेरिका पहुंचे प्रवासियों को रोजगार के लिए वर्क परमिट दिया गया था. ट्रंप के इस कदम से 8 लाख कामगारों पर असर पड़ेगा, जिनके पास सही दस्तावेज नहीं हैं. इन्हीं 8 लाख में भारत के 7 हज़ार लोग शामिल हैं.
ट्रंप को बुरा नहीं कहिए. उन्होंने वही किया है जो हम करना चाहते हैं. बस अभी मामला कोर्ट में है तो इसलिए अधर में है. बाकी सरकार की तो तैयारी है कि जो 40 हज़ार रोहिंग्या अपनी जान बचाने को भारत की शरण में आ गए हैं उनको उनके देश भेज दिया जाए. यानी मरने के लिए भेज दिया जाए, क्योंकि म्यांमार में जो रोहिंग्या मुस्लिमों के हालात हैं, उन हालातों में उनका बचना मुमकिन नहीं है. सेना और उग्रवादी संगठनों के बीच हुई हिंसा में सेना ने 26 सौ से ज्यादा घर फूंक दिए हैं. 400 से ज्यादा लोग मारे गए हैं. 50 हज़ार से भी ज्यादा मुस्लिम बांग्लादेश भाग गए हैं. कुछ को बांग्लादेश ने बॉर्डर पर ही रोक दिया है.
ऐसे हालात में हम चाहते हैं कि जो हमारे देश में पनाह मांगने के लिए आए हैं. उनको खदेड़ दें. और फिर इस तरह विश्वगुरु बन जाएं. ‘मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है.’ ऐसे कथनों से तो हमारी किताबें भरी पड़ी हैं. तो फिर हमें इन रोहिंग्या को पनाह देकर महान बनने की क्या ज़रुरत है?
हमें तो ट्रंप के इस फैसले का स्वागत करना चाहिए. हो सके तो सरकार को बधाई का संदेश भी भेज देना चाहिए कि वाह, आपका फैसला कितना शानदार है. इसकी फ़िक्र तो बिल्कुल नहीं करनी चाहिए कि ट्रंप के इस फैसले का कौन सा देश क्या विरोध कर रहा है. बस हमें अपना स्टैंड ले लेना चाहिए. क्योंकि वहां तो सिर्फ उनकी नौकरी ही जाएगी. हम तो मरने के लिए रोहिंग्या मुस्लिम को वापस देश भेज रहे हैं.
अमेरिकी अटॉर्नी जनरल जेफ सेशंस ने कहा, ‘मैं घोषणा करता हूं कि डीएसीए (डिफर्ड एक्शन फॉर चिल्ड्रन अरायवल) नामक कार्यक्रम जो ओबामा प्रशासन में प्रभाव में आया था, उसे रद्द किया जाता है. देश को यह सीमा तय करनी होगी कि हम हर साल कितने प्रवासियों को आने की इजाजत दे सकते हैं. हम हर उस शख्स को यहां नहीं आने दे सकते, जो यहां आने की इच्छा रखता है. यह सीधी और साधारण सी बात है.’ उन्होंने कहा कि यह ऐम्नेस्टी कार्यक्रम असंवैधानिक था और हजारों अमेरिकियों की नौकरी छीन रहा था.’
बहुत खूब क्या बात कही अमेरिकी अटॉर्नी जनरल ने. एक ही झटके में सबकी नौकरी खा ली. कुछ दिन से इस घोषणा की अपेक्षा की जा रही थी, लेकिन देश भर में इसके खिलाफ प्रदर्शन शुरू हो गए थे. उनकी बात वैसी ही नहीं सुनी गई, जैसे अपने देश में रोहिंग्या मुस्लिम की आवाज़ को अनसुना किया जा रहा है. तभी तो रोहिंग्या ने कोर्ट का सहारा लिया है और कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा है. अमेरिका ने तो प्रवासियों को एंट्री न देने की वजह ये बता दी कि वो अमेरिकयों की नौकरी खा रहे थे. अपने यहां कोर्ट में ये रोहिंग्या को भगाने के लिए ये वजह बताई जा रही है कि इनसे देश की सुरक्षा को खतरा है. आतंकियों की मदद करने का खतरा.
देश की सुरक्षा तो बड़ा मामला है. भगाना चाहिए. मगर सवाल है. वो तो उठेगा. जब रोहिंग्या मुस्लिम पनाह के लिए आ रहे थे तो उन्हें क्यों आने दिया गया? सवाल रोहिंग्या मुस्लिम का सरकार से भी है कि भारत से निकालने पर उनकी मृत्यु लगभग निश्चित है और संविधान नागरिकों के साथ ही सभी व्यक्तियों को जीवन और स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है.
अमेरिका तो अवैध तरीके से पहुंचे लोगों की नौकरियां छीन रहा है. हम तो शरण में आए लोगों को भगा रहे हैं. यानी अमेरिका अब भी हमसे पीछे है. तो खुश तो होना ही चाहिए. क्या फायदा उन 7 हज़ार के बारे में सोचकर, जिनकी नौकरी जाएगी. कहां भरेंगे वो अपना पेट. कौन देगा उन्हें नौकरी? कैसे चलेगा उनका परिवार? मत सोचिए. अपना भला देखिए बस! क्या मिलेगा हमें रोहिंग्या की मदद करके? अमेरिका ने उन प्रवासियों को बेरोज़गार करके अपनी देशभक्ति बचा ली. हमें रोहिंग्या को भगाकर अपने देश की रक्षा कर लेनी चाहिए. मत बनिए महान.
साभार: द लल्लनटॉप