रात 8 बजे से कुछ पहले का वक़्त था. गौरी ने अपनी गाड़ी पार्क की और घर के दरवाजे की ओर बढ़ीं. तभी उनपर 7 बार गोली चली. 4 चूक गईं. 3 लग गईं. एक सिर, दूसरी गर्दन, तीसरी सीने में. इस तरह तलवार ने खुद को कलम से ज्यादा ताकतवर घोषित किया.
कभी पड़ोसियों या रिश्तेदारों से अनबन हो जाती है, तो इंसान उनसे सीधे मुंह बात करना छोड़ देता है. फिर भी कभी उस पड़ोसी या रिश्तेदार के घर गमी हो जाती है, तो एक बार जाता जरूर है. तकल्लुफ में ही सही, इंसानियत के नाम भर पर ही सही.
Follow@ANI#WATCH: Rahul Gandhi speaks on #GauriLankesh's murder, says 'anybody who speaks against ideology of BJP-RSS is pressured, even killed'
मगर इंसानियत भी उस समय नफरत से हार जाती है, जब किसी मरे हुए की लाश पर लोग जश्न मनाने लगते हैं. बात कर रहे हैं गौरी लंकेश की. गौरी देश की दुश्मन नहीं थीं. कोई आतंकी नहीं थी. दुश्मन फ़ौज की सैनिक नहीं थीं. एक पत्रकार थी. एक पत्रकार जिसने अपनी राजनीति चुन ली थी, तय कर ली थी. निडर थी. इसलिए जितना प्रेम कमाया था, उससे ज्यादा नफरत कमाई थी.
@ANIBengaluru: Mortal remains of #GauriLankesh brought to Ravindra Kala Kshethra pic.twitter.com/qnyYglKuqb
Follow@ANIBengaluru: Family members & friends gather as mortal remains of #GauriLankesh were brought to Ravindra Kala Kshethra. pic.twitter.com/WYzFJKIXvv
गौरी लंकेश के खिलाफ सोशल मीडिया पर लोगों का गुस्सा दिखता रहता था. मगर ये क्रोध इतना होगा कि गौरी की जान जाने के बाद तुष्ट होगा, ये नहीं सोचा था. गौरी किसी प्राकृतिक वजह या बीमारी से नहीं मरी. उनकी चौखट पर उनकी हत्या की गई. और स्वघोषित देशभक्त इस हत्या का जश्न मना रहे हैं. जिस देश का खुद को सेवक कहते हैं, उसी के कानून, उसके एक निवासी के साथ अपराध होने का जश्न मना रहे हैं.
गौरी को पब्लिक में ‘कुतिया’ बुलाने वाले इस व्यक्ति को प्रधनमंत्री मोदी फॉलो करते हैं. ये प्रधानमंत्री की गलती नहीं, बल्कि इस बात की ओर संकेत है कि इस आदमी के इरादे इतने बुलंद और सोच इतनी पक्की है कि इसे शर्म भी नहीं कि इसका ट्वीट किसके-किसके पढ़ने में आ रहा है.
फेसबुक पर भी पर्याप्त जश्न देखने को मिला है.
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सबसे ज्यादा चौंकाने और व्यथित करने वाले ट्वीट खुद गौरी की कौम से आया. यानी एक पत्रकार से. पहले जी न्यूज में काम कर चुकीं जागृति शुक्ला ने लिखा कि गौरी के साथ वही हुआ जिसकी वो हकदार थीं. जागृति पहले भी वामपंथी विचारधारा के खिलाफ लिखती आई थीं. पिछले साल इन्होंने ऐसा लिखा था कि वापंथियों का ‘सफाया’ हो जाना चाहिए. इनकी और हिटलर की विचारधारा में कोई फर्क नहीं.
हमने सोशल मीडिया पर नफरत के कई नमूने देखे हैं. मगर ये मानसिक दीवालियापन है. बीमारी है.
साभार:द लल्लनटॉप