पांच साल की निशा (बदला हुआ नाम) जब स्कूल के बाद घर पहुंची, उसके प्राइवेट पार्ट से खून आ रहा था. उसने मां को बताया कि उसे नीचे बहुत दर्द हो रहा है. बच्ची की हालत देखकर मां की हालत भी खराब हो गई. वो उसे लेकर अस्पताल भागीं. अस्पताल में बच्ची की जांच हुई. जांच में मालूम पड़ा कि बच्ची के साथ यौन हिंसा की गई है.
‘ये सब किसने किया?’, मां ने पूछा. बच्ची को उसका नाम तो नहीं मालूम था. शायद इसीलिए रेपिस्ट निश्चिंत था. उसे लगा था कि पांच साल की बच्ची क्या कर पाएगी. मगर बच्चे नहीं भूलते. खुद से हिंसा करने वाले को कोई भी कैसे भूलेगा. ‘उसने टीशर्ट पहनी थी और ऑरेंज कलर की कैप लगा रखी थी.’ बच्ची ने बताया. इसके बाद पुलिस ने बंदे की पहचान कर ली. नाम था विकास.
38 साल के विकास की खुद की एक 16 साल की बेटी है. मगर 5 साल की बच्ची के कपड़े नीचे करते हुए उसने नहीं सोचा. वो डरा हुआ था, या उसे अपनी गलती का एहसास हुआ था, मालूम नहीं. जब पुलिस उसे खोजते हुए उसके घर पहुंची तो वो भाग चुका था. पुलिस के आने की भनक पड़ते ही वो अपने रिश्तेदारों के पास उस्मानपुर चला गया. मगर पुलिस ने उसका फोन ट्रेस कर उसे ढूंढ निकाला.
दिल्ली के शहादरा में रहने वाली ये बच्ची जिस स्कूल में पढ़ती थी, विकास उसमें सिक्योरिटी गार्ड था. लंच के टाइम सभी टीचर्स के टिफिन पहुंचाए उसने. इसके बाद निशा को अकेला पाकर वो उसे एक खाली क्लासरूम में ले गया. वहां उसका रेप कर दिया. 5 साल की नन्ही बच्ची विरोध भी कैसे करती, उसे तो अपने सख्त हाथों में जकड़ लिया होगा उसके रेपिस्ट ने.
विकास झारखंड से था. नौकरी की वजह से यहां रहता था. उसकी पत्नी और बच्ची साथ में रहते थे. एक बेटा भी है जो गांव में रहता है.
स्कूल जॉइन करने के पहले विकास बच्चों को स्कूल लाने-छोड़ने के लिए वैन चलाता था. कितने भरोसे से हर मां अपने बच्चे को स्कूल की वैन में बैठाकर आती है न? कितना भरोसा करती है वो उस इंसान पर जो रोज उसके बच्चे को स्कूल छोड़ता है और सुरक्षित वहां से वापस लेकर आता है. उन मांओं ने नहीं सोचा होगा कि एक दिन उनके बच्चों जैसी ही एक बच्ची के साथ वो ऐसा करेगा.
बच्ची की मां ने ANI से बात करते हुए कहा कि आज ये मेरी बेटी के साथ हुआ है. कल किसी और की बच्ची के साथ हो सकता है. क्या हर मां को डरना चाहिए?
विकास की 16 साल की बेटी है. जानते हैं, कस्टडी के दौरान उसने पूछताछ में क्या कहा, ‘मुझे अपनी बेटी के लिए डर लग रहा है. प्लीज ये सुनिश्चित करिए की वो सेफ हो.’
विरोधाभास
कितना अजीब है ये. जब ये आदमी पांच साल की बच्ची का रेप कर रहा था, तब अपनी बेटी की याद नहीं आई. क्योंकि वो उसकी खुद की बेटी नहीं थी. उसकी योनि में विकास और उसके परिवार की इज़्ज़त नहीं बसती थी. उसके ऊपर उस बच्ची को ब्याहने का बोझ नहीं था. वो बायोलॉजिकल तौर पर उसका अंश नहीं है. चूंकि वो किसी और की ‘प्रॉपर्टी’ है, उसका शोषण किया जा सकता है. ये वैसा ही है, जैसे हम दूसरों के घर में कूड़ा डालने के पहले ज़रा भी नहीं सोचते. मगर अपने घर में कभी गंदगी नहीं रखना चाहते.
डर
चूंकि घर की इज़्ज़त उसकी औरतों की योनि में बसती है, तो पुरुषों से बदला लेने के लिए उनकी औरतों का रेप करना आम है. जब विकास कहता है कि उसे अपनी बेटी की सेफ्टी के लिए डर लग रहा है, वो शायद यही सोच रहा होगा कि कहीं कोई उससे बदला लेने न आ जाए. बदले का मतलब एक ही होगा, उसकी अपनी बेटी का रेप. क्योंकि उसने किसी और की बेटी का रेप किया था.
हमने न सिर्फ ऐसा समाज बनाया है जो रेपिस्ट पैदा करता है, बल्कि उन्हें डराया भी है. कानून के नाम पर नहीं, बल्कि इस बात पर कि कहीं उसकी अपनी बेटी का रेप न हो जाए.
फिलहाल विकास को गिरफ्तार कर लिया गया है. मगर उसकी मां को न्यायपालिका से उम्मीद कम है. कहते हैं ‘जस्टिस डिलेड इज जस्टिस डिनाइड’. यानी देर से मिला न्याय, न्याय न मिलने के बराबर है. जाने निशा को कब न्याय मिलेगा. दुख की बात तो ये है कि जिस उम्र में वो बच्ची से युवा हो रही होगी, इस ट्रॉमा से बाहर आने की कोशिश में अपने सबसे कीमती साल गंवा देगी.
साभार: द लल्लनटॉप