10 सितंबर 2017 को बैठककर अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14 बाबाओं की लिस्ट जारी की. उन्हें फर्जी करार कर दिया है. ऐसे में इन 14 बाबाओं के अलावा और जो भी संत, बाबा और संन्यासी हैं, उन्हें 'असली' संत करार दे दिया गया है.
अखाड़ा. इसका सीधा सा मतलब है, एक ऐसी जगह जहां पहलवानी का शौक रखने वाले लोग दांव-पेच सीखते हैं. अखाड़े में बदन पर मिट्टी लपेटकर ताकत आजमाते हैं और दुश्मनों को पटखनी देने की नई-नई तकनीक ईजाद करते हैं. ये अखाड़े पहलवानी के काम आते हैं. बाद में कुछ ऐसे अखाड़े सामने आए, जिनमें पहलवानी के बजाय धर्म के दांव-पेच आजमाए जाने लगे. इनकी शुरुआत आदि गुरु कहे जाने वाले शंकराचार्य ने की थी.
13 अखाड़ों के जिम्मे है हिंदू धर्म
माना जाता है कि भारत में जो सनातन धर्म है, उसके हालिया स्वरूप को आदि गुरु शंकराचार्य ने स्थापित किया था. देश के चार कोनों उत्तर में बद्रीनाथ, दक्षिण में रामेश्वरम, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिका पीठ की स्थापना कर शंकराचार्य ने धर्म को स्थापित करने की कोशिश की. इसी दौरान उन्हें लगा कि जब समाज में उथल-पुथल हो रहा है और धर्म की विरोधी शक्तियां सिर उठा रही हैं, तो सिर्फ आध्यात्मिक शक्ति के जरिए ही इन चुनौतियों का मुकाबला करना काफी नहीं है. शंकराचार्य ने जोर दिया कि युवा साधु कसरत करके शरीर को सुदृढ़ बनाएं और कुछ हथियार चलाने में भी कुशलता हासिल करें. इसके लिए ऐसे मठ स्थापित किए गए, जहां कसरत के साथ ही हथियार चलाने का प्रशिक्षण दिया जाने लगा. ऐसे ही मठों को अखाड़ा कहा जाने लगा. शंकराचार्य ने ये भी सुझाव दिया कि मठ, मंदिरों और श्रद्धालुओं की सुरक्षा के लिए जरूरत पड़ने पर शक्ति का इस्तेमाल किया जा सकता है. इस तरह अखाड़ों का जन्म हुआ. फिलहाल देश में कुल 13 अखाड़े हैं.
हिंदू धर्म के अनुष्ठानों में सक्रिय भागीदारी
ये सभी 13 अखाड़े हिंदू धर्म से जुड़े रीति-रिवाजों और त्योहारों का आयोजन करते रहते हैं. कुंभ और अर्धकुंभ के आयोजन में इन अखाड़ों की खास भूमिका होती है. कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान के दौरान इनको विशेष सुविधाएं मिलती हैं. नहाने के लिए विशेष प्रबंध होते हैं और इनके नहाने के बाद ही आम श्रद्धालु स्नान कर सकता है. 1954 में इसी तरह इलाहाबाद में कुंभ का आयोजन हुआ था. उसी दौरान भगदड़ मच गई, जिसमें सैकड़ों लोगों की मौत हो गई. इससे पहले भी आयोजित हुए कुंभ और अर्धकुंभ के अलावा दूसरे धार्मिक आयोजनों में अखाड़ों के बीच वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी. इससे बचने के लिए 1954 में अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद की स्थापना की गई. इसके तहत कुल 13 अखाड़े शामिल हैं. इसी बैठक में सभी अखाड़ों के कुंभ और अर्धकुंभ में स्नान का वक्त और उनकी जिम्मेदारी तय कर दी गई थी, जिसे सभी अखाड़े अब भी मानते हैं.
तीन मतों में बंटे हुए हैं 13 अखाड़े
हिंदू धर्म के ये सभी 13 अखाड़े तीन मतों में बंटे हुए हैं. इनके अलावा पिछले साल नासिक में हुए महाकुंभ के दौरान परी अखाड़े और किन्नर अखाड़े ने भी मान्यता मांगी थी, लेकिन अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने मान्यता देने से इनकार कर दिया था.
शैव संन्यासी संप्रदाय
इसके पास सात अखाड़े हैं. शिव और उनके अवतारों को मानने वाले शैव कहे जाते हैं. शैव में शाक्त, नाथ, दशनामी, नाग जैसे उप संप्रदाय हैं.
1.श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी, दारागंज, इलाहाबाद, यूपी
महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की पूजा का जिम्मा इसी अखाड़े के पास है. यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है.
2. श्री पंच अटल अखाड़ा, चौक, वाराणसी, यूपी
इस अखाड़े में केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य दीक्षा ले सकते हैं.
3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी, दारागंज, इलाहाबाद, यूपी
यह अखाड़ा सबसे ज्यादा शिक्षित अखाड़ा है. इस अखाड़े में करीब 50 महामंडलेश्वर हैं.
4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती, त्रयंबकेश्वर, नासिक
यह शैव अखाड़ा है जिसमें महामंडलेश्वर नहीं होते. इस अखाड़े के आचार्य का पद ही प्रमुख होता है.
5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा, बाबा हनुमान घाट, वाराणसी
सबसे बड़ा अखाड़ा है. करीब 5 लाख साधु संत इससे जुड़े हैं.
6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा, दशाश्वमेध घाट, वाराणसी, यूपी
अन्य अखाड़ों में महिला साध्वियों को भी दीक्षा दी जाती है लेकिन इस अखाड़े में ऐसी कोई परंपरा नहीं है.
7.श्री पंचदशनाम पंच अग्नि अखाड़ा, गिरीनगर, भवनाथ, जूनागढ़, गुजरात
इस अखाड़े में केवल ब्रह्मचारी ब्राह्मण ही दीक्षा ले सकते है. कोई अन्य दीक्षा नहीं ले सकता है.
वैरागी संप्रदाय
इनके पास तीन अखाड़े हैं. वैष्णव सम्प्रदाय के लोग विष्णु को ईश्वर मानते हैं. वैष्णव के बहुत से उप संप्रदाय हैं. इनमें बैरागी, दास, रामानंद, वल्लभ, निम्बार्क, माधव, राधावल्लभ, सखी और गौड़ीय शामिल हैं.
1. श्री दिगंबर अनी अखाड़ा, शामलाजी खाक चौक मंदिर, सांभर कांथा, गुजरात
इस अखाड़े को वैष्णव संप्रदाय में राजा कहा जाता है.
2. श्री निर्वानी अनी अखाड़ा, हनुमान गढ़, अयोध्या, यूपी
वैष्णव संप्रदाय के तीनों अनी अखाड़ों में से इसी में सबसे ज्यादा अखाड़े शामिल हैं. इनकी संख्या 9 है.
3. श्री पंच निर्मोही अनी अखाड़ा, धीर समीर मंदिर बंसीवट, वृंदावन, मथुरा, यूपी
अखाड़े में कुश्ती प्रमुख होती है जो इनके जीवन का एक हिस्सा है. अखाड़े के कई संत प्रोफेशनल पहलवान रह चुके हैं.
उदासीन संप्रदाय
उदासीन संप्रदाय में भी तीन अखाड़े हैं. ये सिख-साधुओं का संप्रदाय है जिसकी कुछ शिक्षाएं सिख पंथ से ली गई हैं. ये लोग सनातन धर्म को मानते हैं.
1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा, कृष्णनगर, कीडगंज, इलाहाबाद, यूपी
इस अखाड़े उद्देश्य सेवा करना है. इस अखाड़े में केवल 4 महंत होते हैं जो कभी कामों से निवृत्त नहीं होते हैं.
2. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड
इस अखाड़े में उन्हीं लोगों को नागा बनाया जाता है जिनकी दाढ़ी-मूंछ न निकली हो यानी 8 से 12 साल तक के बच्चे.
3. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा, कनखल, हरिद्वार, उत्तराखंड
इस अखाड़ा में और अखाड़ों की तरह धूम्रपान की इजाजत नहीं है. इस बारे में अखाड़े के सभी केंद्रों के गेट पर इसकी सूचना लिखी होती है.
अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद होता है सबसे ऊंचा
किसी भी अखाड़े में महामंडलेश्वर का पद सबसे ऊंचा होता है. महामंडलेश्वर पद शैव संप्रदाय के दशनामी संन्यासियों ने ईजाद किया था. दशनामी शब्द उन संन्यासियों के लिए इस्तेमाल किया जाता है, जो शंकराचार्य के अनुयायी हैं. हालांकि ये भी माना जाता है कि दक्षिण भारत के श्रृंगेरी मठ के तीसरे आचार्य सुरेश्वराचार्य ने जिन संन्यासियों का गुट बनाया था, उन्हें दशनामी कहा जाता है. हकीकत जो भी हो, लेकिन अखाड़े में महामंडलेश्वर सबसे ऊंचा ओहदा होता है. दशनामी संन्यासियों ने सनातन धर्म की रक्षा के लिए महामंडलेश्वर का पद बनाया और उसकी कुछ योग्यताएं तय कर दीं. महामंडलेश्वर ऐसे व्यक्ति को बनाया जाता है, जो साधु चरित्र और शास्त्रीय पांडित्य दोनों के देश-दुनिया में जाना जाता हो. पहले ऐसे लोगों को परमहंस कहा जाता था. 18 वीं शताब्दी में उन्हें महामंडलेश्वर की उपाधि दी गई. महामंडलेश्वर की पदवी धारण करने वाले जितने भी लोग होते हैं, उनमें जो सबसे ज्यादा ज्ञान ी होता है, उसे आचार्य महामंडलेश्वर कहते हैं. हालांकि कुछ अखाड़ों में महामंडलेश्वर नहीं होते हैं. उनमें आचार्य का पद ही प्रमुख होता है.
अखाड़ों से जुड़े विवाद भी हैं
1. त्रिकाल भवंता और परी अखाड़ा
2016 में उज्जैन में हुए सिंहस्थ कुंभ के दौरान त्रिकाल भवंता ने परी अखाड़े का गठन किया और खुद को उसका महामंडलेश्वर घोषित कर दिया. हालांकि अखाड़ा परिषद ने परी अखाड़े को मान्यता नहीं दी. इसके लिए त्रिकाल भवंता ने प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति को भी पत्र लिख रखा है. हालांकि अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरी ने अखाड़े को मान्यता देने से इनकार कर दिया है.
2. लक्ष्मी त्रिपाठी और किन्नर अखाड़ा
2016 में ही सिंहस्थ कुंभ के दौरान एक और नया अखाड़ा सामने आया, जिसका नाम है किन्नर अखाड़ा. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने इस अखाड़े को भी मान्यता नहीं दी है. किन्नर अखाड़े की लक्ष्मी त्रिपाठी ने कहा था कि उज्जैन शिव की नगरी है और शिव की नगरी में अखाड़े के लिए किसी से मान्यता लेने की जरूरत नहीं है.
3. सचिन दत्ता और निरंजनी अखाड़ा
अगस्त 2015 में नोएडा के एक शराब कारोबारी सचिन दत्ता को निरंजनी अखाड़े का 32वां महामंडलेश्वर घोषित कर दिया गया और नाम रखा गया सच्चिदानंद गिरी. जब सचिन के कारनामे का खुलासा हुआ, तो महामंडलेश्वर का पद छीन लिया गया.
बढ़ती जा रही है महामंडलेश्वर की संख्या
सनातन धर्म के रक्षक माने जाने वाले अखाड़ों के लिए महामंडलेश्वर धनकुबेर भी साबित होते हैं. शायद यही वजह है कि लगभग सभी अखाड़ों में महामंडलेश्वरों की संख्या बढ़ती जा रही है. परी सचिन दत्ता को जब महामंडलेश्वर पद दिया गया था, तो उस दौरान परी अखाड़े की महामंडलेश्वर त्रिकाल भवंता ने भी माना था कि अखाड़ों में पैसे का वर्चस्व बढ़ गया है. अखाड़ों से जुड़े लोगों की मानें तो संन्यासी संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में महामंडलेश्वर पद के लिए 75 लाख से एक करोड़ रुपये तक खर्च किए जाते हैं. वहीं वैष्णव संप्रदाय से जुड़े अखाड़ों में महामंडलेश्वर बनने के लिए 40 से 50 लाख रुपये खर्च करने पड़ते हैं. अखाड़ा जितना बड़ा है, रकम भी उतनी ही बड़ी होती है. सचिन के महामंडलेश्वर बनने में भी दो करोड़ रुपये खर्च करने की बात सामने आई थी. 2001 तक उदासीन और संन्यासी अखाड़ों में लगभग 100 महामंडलेश्वर थे. 2013 के प्रयाग अर्धकुंभ में इनकी संख्या 300 से अधिक हो गई थी. 2001 में वैष्णव संप्रदाय के अखाड़ों में महामंडलेश्वरों की संख्या 400 से अधिक थी, जो 2013 तक बढ़कर 700 से अधिक पहुंच गई थी.
अब जारी किए गए हैं नए नियम
10 सितंबर 2017 को अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14 बाबाओं की लिस्ट जारी कर उन्हें फर्जी करार दिया है. इसी बैठक में संत और महामंडलेश्वर बनने की नई प्रक्रिया भी तय की गई है. परिषद ने तय किया है कि किसी को संत की उपाधि देने से पहले उसकी पूरी पड़ताल की जाएगी. उपाधि देने से पहले परिषद यह भी देखेगा कि व्यक्ति की जीवनशैली किस तरह की है. ये भी देखा जाएगा कि संत के पास नकदी या उसके नाम पर कोई संपत्ति तो नहीं है. अगर किसी के पास संपत्ति है, तो पहले उसे न्यास को दान करना होगा और लोगों के कल्याण के लिए इस्तेमाल करना होगा.
विवाद में रहा है अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष पद
1954 में अखाड़े की स्थापना के वक्त तय किया गया था कि हर अर्धकुंभ से पहले अखाड़े के अध्यक्ष का चुनाव किया जाएगा. परंपरा 2004 तक चलती रही. 2004 में चुनाव हुए और महंत ज्ञान दास को अध्यक्ष चुन लिया गया. वो अयोध्या स्थित हनुमानगढ़ी के महंत हैं. 2010 में इलाहाबाद के मठ बाघंबरी गद्दी में परिषद का चुनाव हुआ, जिसमें 13 में से सात अखाड़े शामिल हुए. जूना, आह्वान, अग्नि, दिगंबर , निर्वाणी और निर्मोही ने चुनाव का बहिष्कार किया था. चुनाव में निर्मल अखाड़ा के महंत बलवंत सिंह अध्यक्ष और आनंद अखाड़ा के शंकरानंद सरस्वती महामंत्री चुने गए. महंत ज्ञानदास ने अखाड़े के चुनाव को हाई कोर्ट में चुनौती दी. 2013 में कोर्ट ने चुनाव पर स्टे लगा दिया. 2014 में महंत ज्ञान दास की जगह पर नरेंद्र गिरी को अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया. महंत ज्ञान दास ने नरेंद्र गिरी के अध्यक्ष पद को हाई कोर्ट में चुनौती दी. कोर्ट ने स्टे लगा दिया. हालांकि अखाड़े नरेंद्र गिरी को ही अध्यक्ष मानते हैं. सिंहस्थ कुंभ 2016 में भी अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष के तौर पर महंत नरेंद्र गिरी को ही मंजूरी मिली थी.
बीड़ा उठाया है तो अंजाम तक भी पहुंचाएं
अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 14 बाबाओं की तो लिस्ट जारी कर दी है. लेकिन अब भी ऐसे कई ढोंगी और पाखंडी हैं, जो धर्म के नाम पर लोगों को बरगला रहे हैं, उनका शोषण कर रहे हैं और उनके जीवन से खिलवाड़ कर रहे हैं. अब जब अखाड़ा परिषद ने असली संत और नकली संत बताने का बीड़ा उठा ही लिया है, तो अब इसे अंजाम तक अखाड़ा परिषद को ही पहुंचाना होगा. धर्म के नाम पर हो रही लूट को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है, इसे लेकर अखाड़ा परिषद को गंभीर होना ही होगा. ऐसा न होने पर राम रहीम और आसाराम जैसे लोग खुद को संत बताकर पब्लिक को बेवकूफ बनाते ही रहेंगे.
साभार: द लल्लनटॉप