मेड इन इंडिया अलीशा चिनॉय के इस गाने को आए 20 साल हो गए. गाने में अलीशा को अपने सपनों के राजकुमार की तलाश है. राजकुमारी एक के बाद एक लड़के को रिजेक्ट किए जा रही है. फिर वो प्यार ढूंढते-ढूंढते तांत्रिक के पास पहुंचती है. तांत्रिक मंत्र फूंकता हुआ एक तसले के ऊपर मौजूद धुएं में लेफ़्ट-राइट हाथ घुमा रहा है. तभी एक लड़का उस तसले में दिखाई देने लगता है. पहले तो सिर्फ़ उसकी फ़िट बॉडी दिखती है और फिर दिखाई देता है चेहरा. ‘चिकना’ चेहरा यानी क्लीन शेव, छाती पर भी कोई बाल नहीं. राजकुमारी अलीशा उस लड़के को देखकर मुग्ध हो जाती है. पापा और मूंछें अनिल कपूर और मूंछें साथ में कुछ ऐसे हैं जैसे दिन में सूरज. जितना हम सूर्य ग्रहण देखकर अचंभित होते हैं, कुछ वैसे ही अचंभित हुए थे अनिल कपूर के फैन्स, जब उन्होंने 1991 की लम्हे फ़िल्म में अनिल कपूर को बिना मूंछों के देखा था. हमारे पापा लोगों पर भी मूंछें इतनी ही ज़रूरी थीं. मुझे याद है जब मेरे पापा ने एक प्ले के लिए अपनी मूंछें उड़वा दी थीं. मुझे इस चीज़ से इतनी दिक्कत हुई थी कि मैंने उन्हें पापा बुलाने से इनकार कर दिया था. लेकिन लड़के वही पसंद आते थे जो बिलकुल क्लीन शेव रहते थे. हमारे दिमाग में ये बात बनी हुई थी कि मूंछें पुराने ज़माने के मर्दों के लिए है, वहीं दाढ़ी तो गुंडों की होती है. मिलिंद सोमन और जो दूसरे क्लीन शेव लड़के हमें टीवी पर दिखते थे, इनका ये लुक 90 के दशक में बिलकुल नया था. क्योंकि इंडिया, वो भी खासकर उत्तर भारत में ‘मर्दानगी’ का मतलब मूंछें हुआ करती थीं. एक पुरुष की बहादुरी और उसके गुरूर का पैमाना उसकी मूंछें सेट करती थीं. वहीं पुरानी वाली गोलमाल फिल्म में अमोल पालेकर का किरदार याद करिए. भवानी शंकर को मूंछों वाले मर्द ही पसंद थे. इसलिए अमोल पालेकर के किरदार को राम प्रसाद और लक्ष्मण प्रसाद के बीच कूदते रहना पड़ता है. अपनी नौकरी बचाने के लिए राम प्रसाद को मूंछें तो रखनी ही होती हैं, साथ में उन मूंछों की इज्ज़त रखने के लिए नशे, गाली, अंग्रेजी, खेल ों और लड़कियों से दूर भी रहना पड़ता है. मूंछ नहीं तो कुछ नहीं ये तो फिल्मों और टीवी की बात थी. अब बात गांवों की. गांवों में औरतें हों या पुरुष, उनके मत्थे शारीरिक काम खूब आता है. गांवों में पुरुषों और औरतों का भेद भी साफ़ है, उनके भूमिकाओं के बीच एक मोटी लकीर है. ऐसे में पौरुष और स्त्रीत्व के बीच की लकीर भी मोटी है. यहां पुरुषों के शरीर तगड़े, ज्यादा मेहनत करने, ज्यादा बोझ उठाने के लिए ट्रेन्ड होते हैं. ऐसा होना पुरुष होना होता है. अगर जात तथाकथित ‘नीची’ है, तब तो आदमी मूंछें न भी रखे, चल जाएगा. मगर खानदानी लोग मूंछें जरूर रखते हैं. उनकी मूंछें ही उनकी पहचान होती हैं. मूंछें ये बताती हैं कि वे तथाकथित ‘ऊंची’ जात के ‘खानदानी’ लोग हैं.
एक दिल चाहिए दैट्स मेड इन इंडिया