घर का सामान यहां-वहां फैलाने के लिए हम सबने डांट खाई है. मैंने तो खूब खाई है. अपना कमरा बेतरतीब रखने पर मम्मी आज भी मुझे श्वान प्रजाति से सीख लेने की सलाह दे देती हैं. कहती हैं, कुत्ता भी पूंछ से ज़मीन झाड़ कर ही सोता है. लेकिन तुम में उतनी भी शर्म नहीं. वो कमरा साफ न करने और उसमें बेतरतीबी से सामान जोड़ने को आलस से जोड़ती हैं.
मम्मी गलत नहीं हैं. लेकिन बस मेरे मामले में. मेरी मम्मी और बाकी लोगों के जानने लायक बात ये है कि कंपल्सिव होर्डिंग डिसॉर्डर (compulsive hoarding disorder) नाम की बीमारी के चलते कुछ लोग बेकार का सामान फेंकने के लिए खुद को दिमागी तौर पर तैयार ही नहीं कर पाते. ऐसे में सामान इस हद तक जमा होता जाता है कि कमरे में चलना तक मुश्किल हो जाता है. कई बार हादसे तक हो जाते हैं. माने घर में आग लगी, पर भागने का रस्ता ही नहीं मिला. ‘दी लल्लनटॉप’ आज इस बीमारी के बारे में आपको बताएगा.
हम इतना लोड लें ही क्यों?
इस बीमारी पर बात होनी इसलिए ज़्यादा ज़रूरी है कि इसके ज़्यादातर शिकार समझ ही नहीं पाते कि उन्हें ये बीमारी है. उन्हें लगता है कि वो आलसी हैं, या वो सफाई को लेकर सजग नहीं हैं. जिन्हें अहसास होता भी है, वो शर्म के मारे किसी से कुछ नहीं कहते. वो सोचते हैं कि गंदा, अस्तव्यस्त रहना कैसे कोई बीमारी हो सकती है? इसलिए इस बीमारी के ज़्यादातर शिकारों को डॉक्टर की मदद मुश्किल से मिल पाती है.
कब समझें कि बेतरतीबी बीमारी बन गई है?
कंपल्सिव होर्डिंग डिसॉर्डर के शिकार शख्स को अपने आस-पास की हर चीज़ से एक भावनात्मक लगाव महसूस होता है. इसलिए वो उन्हें इस्तेमाल के बाद खुद से दूर नहीं कर पाते, फेंक नहीं पाते. उन्हें लगता है कि ये सामान भविष्य में काम आ सकता है. तो सामान जमा होता रहता है और एक वक्त आता है जब घर में चलने की जगह ही नहीं बचती. जमा हुआ सामान लागत में ज़्यादा नहीं होता, लेकिन डिसॉर्डर के शिकार का उस अतिरिक्त सामान से पक्का भावनात्मक रिश्ता होता है. बाथरूम या किचन जैसी जगहें, जो छोटी होती हैं, उनमें लोगों का आना-जाना बंद ही हो जाता है. जब इस कचरे को कोई हटाने की कोशिश करता भी है, तो डिसॉर्डर का शिकार इंसान उससे नाराज़ हो जाता है.
सामान जमा क्यों करते हैं मरीज़?
फिलहाल ये पक्का नहीं मालूम कि कंपल्सिव होर्डिंग डिसॉर्डर के शिकार सामान जमा क्यों करते हैं. डिप्रेशन, स्कित्ज़ोफ्रीनिया, ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसॉर्डर इसकी वजहों में से हैं. कुछ मामलों में ये डिसॉर्डर अकेलेपन की वजह से भी होता है. अगर परिवार में पहले किसी को ये डिसॉर्डर हो, तो आपको ये डिसॉर्डर होने की संभावना ज़्यादा रहेगी. होर्डिंग के कुछ मामलों में ये भी देखा गया कि मरीज़ ने चीज़ों को सलीके से जमाना कभी सीखा ही नहीं था.
चीज़ें शौकिया इकट्ठा करने में और होर्डिंग में फर्क करें
कई लोगों को चीज़ें इकट्ठा करने का शौक होता है. मसलन, सीपियां या पोस्टल स्टैम्प. यहां भी चीज़ें भावनात्मक लगाव वाली होती है, और लगातार इकट्ठा की जाती हैं. लेकिन यहां तरतीब होती है, कैटेलॉगिंग होती है. होर्डिंग डिसॉर्डर में ऐसा नहीं होता.
बेतरतीब गंदगी के अलावा ये लक्षण भी होते हैं
होर्डिंग डिसॉर्डर के शिकार लोग सिर्फ सामान ही जमा नहीं करते. उन्हें रोज़मर्रा के छोटे-मोटे फैसले लेने में भी परेशानी होती है. वो खाना बनाने, और किराने का हिसाब लगाने जैसे काम भी नहीं कर पाते. अपनी चीज़ों से जो लगाव इन्हें होता है, वो इनके सगे-संबंधियों की कीमत पर होता है. नतीजे में इनके परिवार और दोस्तों से रिश्ते कमज़ोर हो जाते हैं.
क्या-क्या जमा करते हैं?
कागज-पत्तर, खाली डिब्बे वगैरह जमा करना तो आम बात है. कुछ मामले ऐसे रहे हैं जहां डिसॉर्डर के मरीज़ों ने पालतू जानवर जमा कर रखे थे. चीज़ों की ही तरह डिजिटल डाटा, जैसे फिल्में, तस्वीरें, गाने भी होर्ड किए जाते हैं.
किसी को होर्डिंग करते देखें तो क्या करें?
अगर आप अपने किसी जानने वाले को होर्डिंग करते हुए देखते हैं, तो उसे एक सायकोलॉजिस्ट के पास ले जाएं. लेकिन ऐसा करने से पहले आपको उसे भरोसे में लेना होगा कि आप उसके सामान को कुछ नहीं होने देंगे. नहीं, तो वो आपकी बात मानेगा ही नहीं.
इलाज कैसे होता है?
कंपल्सिव होर्डिंग डिसॉर्डर का इलाज मुश्किल है. कॉग्निटिव बिहेवरियरल थेरेपी के ज़रिए मरीज़ को समझाने की कोशिश की जाती है कि वो बेकार का सामान क्यों नहीं फेंक पा रहा है. कोशिश रहती है कि मरीज़ खुद अपने घर को साफ करने में रुचि ले, खासकर बेकार सामान फेंकने के मामले में. वरना डिसॉर्डर के लौट आने की गुंजाइश रहती है.
साभार: द lallanatopa