राजस्थान के सीकर में 14 दिनों से महापड़ाव डाले जिन किसानों को नेशनल मीडिया में तवज्जो नहीं मिल रही थी, उन्होंने सरकार को झुकने के लिए मजबूर कर दिया. इन किसानों की 11 सूत्री मांगें थीं, जिनमें से राजस्थान सरकार 50 हजार रुपए तक की कर्जमाफी के लिए तैयार हो गई है. इन किसानों का हाल जानने दी लल्लनटॉप पहुंचा सीकर, जहां हमें पता चला कि कैसे लाखों किसान इकट्ठा होने के बावजूद 14 दिनों तक चला ये आंदोलन अहिंसक बना रहा और किसके दम पर किसानों को इतनी बड़ी सफलता मिली.
सीकर की सब्जी मंडी पहुंचने पर हमने पाया कि किसान वहां गैस सिलेंडर, राशन और दूसरी बुनियादी चीजों के साथ मौजूद थे. पूछने पर उन्होंने बताया कि महापड़ाव के लिए वो लोग महीनेभर की तैयारी के साथ चले थे. किसान सरकार से कैसे लड़ेंगे, इसकी पहले से तैयारी कर ली गई थी.
महापड़ाव की ज़रूरत पर एक किसान बताते हैं, ‘सरकार की गलत नीतियों की वजह से किसानों को बहुत नुकसान हुआ. एक फसल नोटबंदी और दूसरी फसल जीएसटी की भेंट चढ़ गई. बैंक कुर्की करके किसानों का अपमान कर रहे हैं. नए-पुराने नोटों से जूझने के बाद जब जीएसटी आया, तो व्यापार ी कन्फ्यूज हो गए. नेता कहते हैं कि उन्हें किसानों की चिंता है. हमने 163 सीटों से बहुमत दिया, फिर भी अच्छे दिन नहीं आए.’
किसानों की एक मांग जानवरों के बेचने की इजाज़त मिलना भी थी. इस बारे में किसान बताते हैं कि पशु क्रूरता अधिनियन 2017 आने की वजह से बहुत दिक्कत हुई. इससे किसान जानवरों से मुनाफा नहीं कमा पा रहे हैं, जबकि उन पर पैसा पहले जितना ही खर्च करना पड़ रहा है. मंडी में मौजूद एक किसान कहते हैं, ‘अगर सरकार गाय को मां का दर्जा देती है, तो पहले उसे मंत्रालय खोलना चाहिए था. गोशालाएं बनवाते. लाखों युवा बेरोजगार हैं, उन्हें रोजगार मिलता. सरकार को क्या कमी है, एसी भी लगवा देते. बिना इंतजाम के कानून बना दिया और भुगत हम रहे हैं. बिना स्वार्थ के न किसान काम करते हैं और न सरकार.’
स्थानीय नेताओं को अपनी समस्या बताने के सवाल पर किसान बताते हैं कि सत्ता में डूबी सरकार ने कुछ किया ही नहीं. किसान चार महीने से विरोध कर रहे हैं, बीच में एक बार चार घंटे का चक्का जाम भी किया था, लेकिन सरकार की तरफ से कोई जवाब नहीं आया. एक किसान के मुताबिक, ‘प्याज ने बिल्कुल बर्बाद कर दिया. प्रधानमंत्री का बार-बार विदेश दौरा हो रहा था. हमें लगा कि प्याज एक्सपोर्ट करेंगे, लेकिन कुछ नहीं हुआ. सरकार के कहने पर परंपरागत खेती की, लेकिन प्याज सड़ गया.’
इस आंदोलन के अहिंसक रहने की बात किसान भी गर्व से बताते हैं. पिछले दो-तीन साल में मंदसौर समेत जितने भी किसान आंदोलन हुए हैं, वो सारे हिंसक हुए और असफल रहे, लेकिन सीकर किसान आंदोलन में कोई हिंसा नहीं हुई. दो दिन हाइवे भी जाम रहा, लेकिन न तो एक भी लाठी चली और न एक भी गोली. किसान कहते हैं कि उन्होंने अमराराम जैसा नेता कहीं नहीं देखा. अमराराम ही इस आंदोलन का नेतृत्व कर रहे हैं. किसान बताते हैं कि उन्होंने प्रशासन के साथ बाप-बेटे जैसा व्यवहार रखा, प्रशासन को बल-प्रयोग का मौका ही नहीं दिया, अमराराम ने उन्हें जहां बैठने के लिए कह दिया, वो बैठ गए.
तहसील स्तर पर कमेटियां बनाकर संचालित किए गए इस आंदोलन में किसानों का अनुशासन देखने लायक था. और उससे ज्यादा सराहनीय है महिलाओं की भागीदारी, जिन्होंने पहले घर के काम किए और फिर नुक्कड़ोंज-नाकों पर बैठकर रास्ता रोकने का काम किया. मंडी में मौजूद किसान खुलकर महिलाओं की मदद को स्वीकार करते हैं और उन्हें सफलता का कारण बताते हैं.
अहिंसक, महिलाओं की बड़ी भूमिका और सरकार को झुकाने की तीन बड़ी उपलब्धियों के साथ किसान आगे बढ़ रहे हैं. सीकर का जमीनी हाल जानने के लिए देखिए दी लल्लनटॉप का ये वीडियो, जो सीकर से लाइव किया गया था.