13 सितंबर, 1948 को भारत में पहली बार इमरजेंसी जैसी स्थिति बनी. ये 1975 की इंदिरा इमरजेंसी से अलग थी. इस दिन भारत के 36 हज़ार सैनिकों ने हैदराबाद में डेरा डाला. 13 से लेकर 17 सितम्बर तक भयानक क़त्ल-ए-आम हुआ. कहा गया कि हजारों लोगों को लाइन में खड़ाकर गोली मार दी गई. आर्मी ने इसे ‘ऑपरेशन पोलो’ कहा था. कुछ हिस्से में ये ‘ऑपरेशन कैटरपिलर’ भी कहा गया. सरदार पटेल ने दुनिया को बताया कि ये ‘पुलिस एक्शन’ था. पढ़िए हैदराबाद के भारत में मिलने की कहानी .
दुनिया के सबसे धनी लोगों में से एक निज़ाम चाहते थे अलग देश
भारत की आज़ादी के बाद कई रियासतें अपना अलग देश चाहती थीं. पर भारत सरकार इस बात के लिए तैयार नहीं थी. क्योंकि ये संभव नहीं था. कोई भी तर्क उनकी बात के पक्ष में नहीं जाता था. नतीजन प्यार से या फटकार से, सबको भारत के साथ मिलना पड़ा. पर कुछ रियासतों ने भारत को चुनौती देने का मन बना लिया था. इनमें से एक रियासत थी हैदराबाद रियासत. यहां पर समरकंद से आए आसफजाह की वंशावली चलती थी. ये लोग मुगलों की तरफ से इस रियासत के गवर्नर थे. औरंगजेब के बाद इनका राज हो गया था यहां. इनको निज़ाम कहते थे. तो 1948 में निज़ाम उस्मान अली खान आसफजाह सातवें उस प्रजा पर राज करते थे, जिसमें ज्यादातर हिंदू थे. निज़ाम उस वक़्त दुनिया के सबसे धनी लोगों में से एक थे.
निज़ाम का सपना था कि अपना एक अलग देश हो. इसके लिए अपनी आर्मी के अलावा उन्होंने एक अलग आर्मी बना रखी थी. जिसमें मुस्लिम समुदाय के लोग थे. इनको रजाकार कहते थे. इसके पहले निज़ाम ब्रिटिश सरकार के पास भी जा चुके थे. कि कॉमनवेल्थ के अधीन इनका अपना देश हो. पर माउंटबेटन ने मना कर दिया था. A. G. Noorani ने लिखा है कि नेहरू बातचीत से मामला सुलझाना चाहते थे. पर सरदार पटेल के पास बात करने के लिए धैर्य नहीं था.
एग्रीमेंट टूटते गए, देश से लेकर अमेरिका तक बात पहुंची
अभी तक हैदराबाद से एग्रीमेंट हुआ था कि आप अपना राज्य चलाइए अभी. बस भारत सरकार आपके फॉरेन रिलेशन देखेगी. साथ ही पाकिस्तान से आपको कोई सम्बन्ध नहीं रखना है. पर हैदराबाद रियासत ने पाक को करोड़ों रुपये भी दिए थे. इस नाते दोनों पक्ष एक-दूसरे पर एग्रीमेंट तोड़ने का इल्जाम लगाते रहते. रियासत ने आरोप लगाया कि भारत सरकार उनको चारों तरफ से घेर रही है. सरकार ने कहा कि आप हमारी करेंसी तक तो यूज नहीं कर रहे. पाकिस्तान से हथियार मंगवा रहे हैं. रजाकार की सेना बना रहे हैं. क्या चाहते हैं?
माउंटबेटन ने जून 1948 में फिर एक एग्रीमेंट रखा. इसके मुताबिक सब चलता रहेगा वैसे ही. निज़ाम हेड ऑफ़ स्टेट रहेंगे. पर धीरे-धीरे जनता का फैसला लाया जायेगा. भारत सरकार तैयार हो गई. पर निज़ाम तैयार नहीं हुए. उनको पूर्ण स्वराज चाहिए था. इसके लिए उन्होंने यूएन और अमेरिका के राष्ट्रपति हैरी ट्रूमैन की भी मदद मांगी. पर मिली नहीं. उन लोगों ने कुछ नहीं बोला.
ओवैसी के दादाजी बने रजाकारों के मुखिया, बनाना चाहते थे इस्लामिक देश
हैदराबाद में पहले से ही कम्युनल टेंशन था. इसी के साथ तेलंगाना को लेकर विरोध था. उसी वक़्त मुसलमानों का एक ग्रुप बना था MIM जिसके मुखिया थे नवाब बहादुर यार जंग. इनके मरने के बाद मुखिया बने कासिम रिजवी, जो कि अभी के हैदराबाद के ओवैसी भाइयों के दादा जी हैं. कासिम रजाकारों के नेता थे. इन लोगों का उद्देश्य था इस्लामिक राज्य बनाना. ये डेमोक्रेसी को नहीं मानते थे. इन लोगों ने आतंक फैला दिया. जो भी इनके खिलाफ था, इनका दुश्मन था. कम्युनिस्ट और मुसलमान जो इनसे अलग थे, वो भी इनके टारगेट थे. मेन टारगेट थे हिन्दू. नतीजन हजारों लोगों को मारा जाने लगा. औरतों का रेप हुआ. इनको लगा कि ऐसा करने से इनका महान राज्य बन जायेगा.
भारत सरकार का धैर्य टूट गया. सरदार पटेल ने सेना की टुकड़ी हैदराबाद में भेज दी. सेना के पहुंचने के बाद 5 दिन तक जबरदस्त लड़ाई हुई. पुलिस एक्शन बताने के चलते दुनिया के किसी और देश ने हाथ नहीं डाला. मिलिट्री एक्शन कहते ही दुनिया के बाकी देश भारत पर इल्जाम लगा देते कि भारत ने किसी दूसरे देश पर हमला कर दिया है. रजाकारों को पूरी तरह बर्बाद कर दिया गया. कासिम को जेल में डाल दिया गया. इनके ऑफिस दारुस्सलाम को फायर स्टेशन बना दिया गया. MIM के नेताओं को पाकिस्तान भेज दिया गया या पब्लिक में निकलने से रोक दिया गया. बाद में कासिम को जेल से निकलने पर दो दिन का टाइम दिया गया पाकिस्तान जाने के लिए. MIM को एकदम बंद कर दिया गया. ये वही पार्टी है, जिसे अब ओवैसी भाई AIMIM के नाम से चलाते हैं.
आरोप लगे थे इंडियन आर्मी पर, 65 साल बाद आई रिपोर्ट
इस लड़ाई पर कई आरोप लगे. इलज़ाम था कि सेना और सिविल के लोगों ने हैदराबाद में लूटपाट और रेप की इन्तिहा कर दी थी. पर इन सारी बातों को बाहर नहीं आने दिया गया. इसके लिए सुन्दर लाल कमिटी भी बनाई गई. पर इसकी रिपोर्ट बाहर आने में 65 साल लग गए! 2013 में ये रिपोर्ट बाहर आई. कई लोगों के मुताबिक इस लड़ाई में 10-40 हज़ार लोग मारे गए थे. कुछ कहते हैं कि दो लाख के करीब लोग मरे थे!
लगभग हर जगह प्रभावित (sic) क्षेत्रों में सांप्रदायिक उन्माद हत्या के मामले में खुद को थका नहीं था, जो अकेले में कुछ स्थानों पर भी महिलाओं और बच्चों को बख्शा नहीं कर रहे थे। बलात्कार, मस्जिदों में से desecretion (sic) लूट, आगजनी,, जबरन रूपांतरण, घरों और भूमि की जब्ती (भारतीय इस तरह के शोलापुर और नागपुर के रूप में शहरों के लिए कभी कभी राज्य के बाहर) महिलाओं के अपहरण, पीछा या हत्या के साथ थे।
- सुंदर लाल समिति की रिपोर्टड्यूटी भी जोड़ने के लिए है कि हम प्रभाव के लिए पूरी तरह से स्पष्ट सबूत नहीं उदाहरण हैं जिनमें भारतीय सेना को और भी स्थानीय पुलिस से संबंधित पुरुषों लूटपाट और यहां तक कि अन्य अपराधों में भाग लिया था कि था हमें मजबूर। अपने दौरे के दौरान हम, इकट्ठा नहीं कुछ स्थानों पर, कि सैनिकों के लिए प्रोत्साहित किया, राजी और कुछ मामलों में भी मुस्लिम दुकानों और घरों को लूटने के लिए हिंदू भीड़ मजबूर कर दिया। एक जिले शहर में प्रशासन की वर्तमान हिंदू सिर हमें बताया सेना द्वारा मुस्लिम दुकानों की एक सामान्य लूट नहीं है। एक और जिले में एक मुंसिफ घर, दूसरों के बीच सैनिकों द्वारा लूट लिया गया था और एक तहसीलदार की पत्नी को पीटा।
- सुंदर लाल समिति की रिपोर्ट
रिपोर्ट ने साफ़-साफ़ हैदराबाद स्टेट में हुए लूट-पाट और रेप का ब्योरा दिया है. हैदराबाद का भारत में विलय हो तो गया पर इसके लिए बड़ी कीमत चुकानी पड़ी. ये सोचना बड़ा मुश्किल हो जाता है कि क्या होता, तो क्या होता. पर जो लोग एकता और अखंडता की बात करते हैं, उनको तो कम-से-कम ये नहीं ही करना चाहिए था. लड़ाई में मरना-मारना तो अलग बात होती है. पर लड़ाई के अलावा अपनी कुंठा निकालना किसी भी देश के इतिहास को दागी बना देता है.
साभार: द lallanatopa