हलीमा याकूब सिंगापुर की नई राष्ट्रपति बनी हैं. वहां की पहली महिला राष्ट्रपति. आप हलीमा को ‘भारत की बेटी’ कह सकते हैं. उनके अब्बा हिंदुस्तानी थे. मुसलमान. चौकीदार थे. सरकारी मुलाजिम थे. हलीमा जब 8 साल की थीं, तब अब्बू का इंतकाल हो गया. पिता की मौत के बाद उनके परिवार को सरकारी क्वॉर्टर से जबरन बाहर निकाल दिया गया. अम्मी पर परिवार की जिम्मेदारी आ गई. अम्मी ने ठेली लगाकर परिवार का गुजारा चलाया. मीडिया से बात करते हुए हलीमा ने खुद अपनी दास्तां सुनाई थी. उनकी अम्मी मलय समुदाय से हैं. हलीमा के अलावा उनके चार और बच्चे भी थे. इनमें सबसे छोटी हैं हलीमा. मलय एक खास सांस्कृतिक समूह है. ये लोग ज्यादातर मलयेशिया, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई, सिंगापुर और दक्षिणी थाइलैंड के इलाकों में रहते हैं.
बहुत गरीबी में गुजरा बचपन
छोटी सी हलीमा भी मां की मदद करती थीं. सुबह 5 बजे जगकर मां के साथ लग जातीं. बाजार जाकर सामान खरीदतीं. फिर स्कूल जातीं. क्लास में पिछली बेंच पर बैठतीं. नींद पूरी तो होती नहीं थी. तो एक बार क्लास में ही सो गईं. उन्हें क्लास की खिड़की से बाहर झांकना बहुत पसंद था. खुली आंखों से सपना देखना बहुत भाता था उनको.
सोफा खरीदने के लिए 8 महीने तक पैसे बचाए
शादी के बाद हलीमा और उनके पति को अपना पहला सोफा खरीदने के लिए 8 महीने तक पैसे जोड़ने पड़े.
बिना चुनाव के ही जीत गईं हलीमा
62 साल की हलीमा सिंगापुर में काफी जाना-माना चेहरा हैं. वो पीपल्स ऐक्शन पार्टी की नेता हैं. सिंगापुर संसद की पहली महिला स्पीकर बनीं. सांसद भी थीं. इस्तीफा देकर राष्ट्रपति चुनाव के लिए खड़ी हुईं. अब जीत भी गई हैं. वो भी बिना चुनाव, बिना मतदान के. उनके खिलाफ दो उम्मीदवार खड़े थे. लेकिन उनकी उम्मीदवारी खारिज हो गई. कहा गया कि वो तय योग्यता के मुताबिक नहीं हैं. कुल मिलाकर कहें, तो बस हलीमा ही योग्य पाई गईं. इससे पहले भी सिंगापुर में एक मलय राष्ट्रपति हो चुके हैं. युसूफ इसाक. वो 1965 से 1970 तक राष्ट्रपति रहे. सिंगापुर के नोटों पर आपको उनकी तस्वीर मिल जाएगी.
भारत से अपने कनेक्शन पर ज्यादा नहीं बोलतीं हलीमा
हलीमा भारत से अपने कनेक्शन पर ज्यादा गर्मजोशी नहीं दिखातीं. वो खुद को मलय ही कहती हैं. आलोचकों का कहना है कि इसके पीछे उनका फायदा है. चूंकि उनके पिता भारतीय थे और मां मलय, तो सिंगापुर में उन्हें अल्पसंख्यक नस्ल का माना जाएगा. ऐसे में वो राष्ट्रपति पद के लिए खड़ी नहीं हो सकती थीं. मलय परंपरा में भी ऐसा ही रिवाज है. अगर मां और बाप अलग-अलग समुदायों से आते हैं, तो बच्चे को पिता की पहचान मिलेगी. शायद इसीलिए हलीमा ने बार-बार अपनी मलय होने की पहचान का जिक्र किया. पहले के चार चुनावों में वो मलय समुदाय की उम्मीदवार के तौर पर ही खड़ी हुई थीं. तो इसका भी उन्हें फायदा मिला. उन्हें मलय ही माना गया. हालांकि इसे लेकर भी सिंगापुर में काफी बहस हो रही है.
राष्ट्रपति चुनाव के पीछे कोई साजिश थी?
हलीमा के चुनाव पर आलोचना भी खूब हो रही है. बेवजह नहीं. पहली बार ऐसा हुआ कि राष्ट्रपति का पद किसी एक खास समुदाय (मलय) के लिए आरक्षित कर दिया गया. इल्जाम है कि राष्ट्रपति चुनाव में साजिश हुई है. पद के उम्मीदवार की योग्यता से जुड़ी शर्तें तय करने में चालाकी दिखाई गई. जान-बूझकर ऐसी योग्यता तय की गई कि हलीमा के अलावा कोई और चुना ही न जाए.
PM ली सियेन लुंग ने अपने फायदे के लिए हलीमा को चुना!
सिंगापुर की कुल आबादी में करीब 13 फीसद मलय हैं. सिंगापुर में सबसे ताकतवर पद है प्रधानमंत्री का. ली सियेन लुंग वहां के PM हैं. उनके पिता ली कुआन यू सिंगापुर की स्थापना के समय PM बने थे. सरकार ने पहले कहा कि इस दफा केवल कोई मलय ही राष्ट्रपति बनेगा. फिर बाद में इस योग्यता को और सीमित कर दिया गया. ऐसी सूरत बनी कि हलीमा के अलावा कोई और उम्मीदवार योग्यता की शर्तें पूरी ही नहीं कर पाया.
हलीमा को राष्ट्रपति बनाने के लिए की गई प्लानिंग!
अब आरोप लग रहा है कि सरकार ने हलीमा को राष्ट्रपति बनाने के लिए ही सारी प्लानिंग की. पिछले कुछ समय से PM ली का काफी विवाद चल रहा है. अपने भाई-बहनों के साथ. पिता की जायदाद को लेकर. उन पर सत्ता के बेजा इस्तेमाल का भी आरोप है. राष्ट्रपति पद के लिए दो और शख्स भी खड़े हुए थे. इनमें मुहम्मद सालेह मारिकन भी थे. उन्होंने कहा था कि अगर जीत गए, तो PM पर लगे आरोपों की जांच करेंगे. लेकिन उनकी उम्मीदवारी खारिज कर दी गई.
हलीमा के सामने अपनी योग्यता साबित करने की चुनौती
हलीमा के चुने जाने पर सिंगापुर में बहस छिड़ गई है. लोग आरोप लगा रहे हैं. सरकार पर उंगली उठ रही है. कहा जा रहा है कि सरकार ने जान-बूझकर एक भरोसेमंद को राष्ट्रपति पद पर बिठाया. ताकि किसी मुश्किल में न फंसे. जो चाहे, वैसा ही हो. सिंगापुर में राष्ट्रपति के पास ज्यादा अधिकार नहीं होते. हां, भ्रष्टाचार जैसे आरोपों की जांच शुरू करवाने का हक जरूर होता है. लोग कह रहे हैं कि लोकतंत्र का गला घोंटा गया है. बिना चुनाव के कैसा राष्ट्रपति? इस विवाद से हलीमा की राह मुश्किल हो गई है. उनको पहले तो अपनी योग्यता साबित करनी होगी. सबूत देना होगा कि वो इस पद के योग्य हैं.
साभार: द लल्लनटॉप