बीजेपी ने उत्तर प्रदेश में संगठन की कमान चंदौली से सांसद महेंद्रनाथ पांडेय को सौंप दी है. वो केशव प्रसाद मौर्य की जगह लेंगे. इसे महेंद्रनाथ के प्रमोशन के तौर पर देखा जा रहा है. वो फिलहाल केंद्र सरकार में मानव संसाधन के राज्यमंत्री हैं. अब उनके हाथ में देश के सबसे बड़े प्रदेश या कहें कि राजनीति क लिहाज से सबसे चौचक प्रदेश की कमान है. उनके राजनीतिक सफर के बारे में तो सब बता रहे हैं, लेकिन हम बताएंगे उनके कुछ खास किस्से :
12 बजे तक पूजा-पाठ में बिज़ी रहते हैं
हर कोई कह रहा है बीजेपी ने ब्राह्मण कार्ड खेल ा है. दलित राष्ट्रपति, यूपी में ठाकुर सीएम के बाद ब्राह्मणों को खुश करने के लिए महेन्द्रनाथ पांडेय को प्रदेश अध्यक्षी सौंपी गई है. मगर इनकी एक आदत संगठन के लिए मुश्किलें खड़ी कर सकती है. बताया जा रहा है कि वो पूजा-पाठ बहुत करते हैं. 12 बजे तक तो वो भगवान की सेवा में लीन रहते हैं. इसके बाद जनता की बारी आती भी है तो लोगों के लिए उनसे मुलाकात करना आसान नहीं है. यूपी के एक वरिष्ठ पत्रकार ने बताया कि उनका सर्वसुलभ न होना ही उनका निगेटिव प्वॉइंट है. 2002 में गाजीपुर के सैदपुर में उनकी हार के पीछे भी यही बड़ा कारण था. लोगों में यही नाराज़गी थी कि वो सबसे मिलते नहीं. आगे के चुनावों में भी वो इसीलिए हारे.
शाह के कहने पर लड़े थे लोकसभा चुनाव
2009 के लोकसभा चुनाव में महेंद्रनाथ भदोही से चुनाव लड़े और हार गए. इससे पहले विधानसभा चुनावों में भी उन्हें हार का सामना करना पड़ा था. 2014 लोकसभा चुनाव की बारी आई तो उनकी तैयारी फिर भदोही से ही लड़ने की थी. मगर पार्टी ने चंदौली से टिकट दे दिया. वो नाराज़ हो गए क्योंकि चंदौली से जीत पाने की संभावना उन्हें काफी कम दिख रही थी. बताते हैं कि ऐसे में तत्कालीन चुनाव प्रभारी अमित शाह ने महेंद्रनाथ को समझाया और चंदौली से लड़ने के लिए तैयार किया. फिर क्या था, मोदी लहर में उनकी नइया पार लग गई. 2016 में मोदी कैबिनेट में राज्यमंत्री का पद भी मिल गया.
रामजन्म भूमि आंदोलन और इमरजेंसी के वक्त जेल गए
राम जन्म भूमि आंदोलन में भी महेंद्रनाथ सक्रिय रहे थे. तब यूपी में मुलायम सिंह की सरकार थी और उन पर रासुका लगी थी. वो जेल भी गए थे. इससे पहले इमरजेंसी के वक्त भी वो 5 महीने के लिए जेल गए थे, तब वो छात्रनेता थे. 1973 में वो वाराणसी के एंग्लो बंगाली इंटर कॉलेज में अध्यक्ष चुने गए. 1978 में बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ के महामंत्री बने. फिर एबीवीपी में सक्रिय रहे. 1991 में रामलहर पर सवार बीजेपी की सरकार आई तो वो भी गाजीपुर की सैदपुर सीट से विधायक बन गए. पांडेय के पास एमए, पीएचडी के साथ ही मास्टर ऑफ जर्नलिज़्म की भी डिग्री है.
संसदीय क्षेत्र को अब तक कुछ खास नहीं दिया
जिस चंदौली ने उनको पहली बार सांसद बनाया. उनकी खत्म होती राजनीतिक पारी को पावर दी, उसे महेंद्रनाथ ने अब तक कुछ खास नहीं दिया. 2016 में उन्हें मंत्री पद भी मिल गया, मगर चंदौली को इसका भी कुछ फायदा नहीं मिला. मुगलसराय का नाम बदलने का एक विवाद जरूर उनके कार्यकाल में हो गया है. इसका नाम दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर रखे जाने की बात हो रही है. जबकि स्थानीय लोग इसका नाम लाल बहादुल शास्त्री के नाम पर चाहते हैं. स्थानीय पत्रकार बताते हैं कि क्षेत्रीय लोगों में उनके कामकाज को लेकर नाराज़गी है. वो मिलते भी मुश्किल से हैं, लोग इस बात से भी नाखुश रहते हैं.
पूर्वांचल से पीएम, सीएम और अब प्रदेश अध्यक्ष, ऐसा क्यों?
सच कहें तो इसका जवाब अमित शाह ही दे सकते हैं. क्योंकि सिर्फ और सिर्फ वो जानते हैं कि अगले पल वो क्या करने वाले हैं. जब पिछली बार यूपी का प्रदेश अध्यक्ष चुना जाना था तो भी कई नाम चले, मगर आया केशव मौर्य का नाम जो कहींं दौड़ में ही नहीं थे. यही हाल यूपी का सीएम चुनने और राष्ट्रपति प्रत्याशी तय करते वक्त हुआ. लोगों के सारे कयास धरे रह गए. अब फिर यही हुआ. एक सवाल और उठ रहा है कि पूर्वांचल पर इतनी मेहरबानी क्यों? पीएम भी वहीं से, सीएम भी वहीं से. तमाम और नेता जैसे चंदौली से राजनाथ सिंह, मीरजापुर से अनुप्रिया पटेल, गाजीपुर से मनोज सिन्हा और देवरिया से कलराज मिश्र केंद्र में मंत्री हैं. और अब प्रदेश अध्यक्ष भी यहीं का. कुल मिलाकर ये समझिए कि क्षेत्रीय बैलेंस नाम की कोई चीज नहीं रह गई है अमित शाह और नरेंद्र मोदी की बीजेपी में. नेता सिर्फ एक है. नरेंद्र मोदी. उसी के नाम पर चुनाव लड़े जाएंगे और जीते जाएंगे.