वह तटस्थ था,
अनासक्त,
तन्मय ।
कब पलकें खुलीं,
शोभा पंखुरियाँ डुलीं,
रंग निखरे,
कुम्हलाए,
वह अजान था,
आत्मस्थ,
वृन्तस्थ ।
गंध की लपटें
असीम में समा गईं,
स्वर्ण पंख मरदों से
धरा योनि भर गई ।
वह समाधिस्थ,
मौन,
मग्न ।
धीरे धीरे
दल झरे,
रूप रंग बिखरे,
वह अवाक्,
रिक्त,
नग्न ।
जन्म मरण
ऊपरी क्रम था,
वह,
मात्र
फूल ।