कला ओ पारगामी
गर्जन मौन
शुभ्र ज्ञान घन,
अगम नील की चिन्ता में
मत घुल ।
यह रूप कला ही
प्रेम कला
अमरों का गवाक्ष है ।-
उस पार की उयोति से
तेरा अंतर
दीपित कर देगी ।
तेरी आत्म रिक्तता
अक्षय वैभव से
भर जाएगी ।
ओ शरद अभ्र
तूने अपने मुक्त पंखों से
आंसू का मुक्ता भार
आकांक्षा का गहरा
श्यामल रंग
धरती पर बरसा कर
उसे हरी भरी कर दिया ।
तेरा व्यथा धुला
नग्र मन
व्यापक प्रकाश वहन करेगा,
शाश्वत मुख का दर्पण बनेगा ।
तेरे द्रवित हृदय में
स्वर्ग
स्वजनों का इंद्रधनु नीड़
बसाएगा ।
जिनकी कला ही सत्य और सुंदर है ।