पुरानी ही दुनिया अच्छी
पुरानी ही दुनिया ।
नदी में कमल बह रहे
कहाँ से आ रहे ?
किनारे किनारे
स्रोत की ओर
जाते-जाते-देखा,
नदी के बीच
रंगीन भंवर पड़ा है;
उसी से फुहार की तरह
कमल बरस रहे हैं ।
हाय रे, गोरी की नाभि-से भंवर ।
पास जाते ही
भंवर ने लील लिया ।
यह परियों के महल का
द्वार था ।
परियाँ खिलखिला कर हँसीं ।
भौंहों के संकेत से कहा,
राजकुमारी से व्याह करो ।
परियों की राजकुमारी
नत चितवन
मुसकुरा दी ।
उसके जूड़े में
वैसा ही कमल था ।
पुरानी ही दुनिया अच्छी,
पुरानी ही दुनिया ।
वह सीधा था,
हदय में दया थी ।
झाड़ फूँस की कुटी,
भगवान परीक्षा लेने आए ।
भस्म रमाए, झोली लटकाए,
उन्होंने हाथ फैलाए
भीख मांगी ।
मुट्ठी भर अन्न पाकर
चुपके,
वरदान दे गए ।
झाड़ पात की कुटी
सोने का महल बन गई ।
द्वारपाल चंवर डुला रहे हैं
बुढिया ब्राह्मणी
नवयुवती बन गई,
शची सा श्रृंगार किए है ।
पुरानी ही दुनिया अच्छी,
पुरानी ही दुनिया ।
एक थी रुत्री, एक था पुरुष.
दोनों प्रेम डोर में बंधे,
सच्चे प्रेमी प्रेमिका थे ।
मंदिर के अजिर में पड़े रहते,
देवी का प्रसाद पाते ।
दोनों एक साथ मरे ।
मर कर हरे भरे लंबे
पेड़ बन गए ।
अब दोनों धूप छाँह में
आंख मिचौनी खेलते,
दिन भर पत्तों के ओंठ हिला
गुपचुप बातें करते ।
वसंत में कोयल पूछती,
कुहू, कुहू, कौन है, कौन है ?
बरसात में पपीहा उत्तर देता,
पिऊ पिऊ, प्रिय हूँ, प्रिय हूँ ।
पुरानी ही दुनिया अच्छी,
सच, पुरानी ही दुनिया ।