वन फूलों में
मैंने नए स्वप्न रंग दिए,
कल देखोगे ।
कोकिल कंठ में
नयी झंकार भर दी
कल सुनोगे ।
ये तितलियों के पंख
वन परियों को दे दो ;
चेतने,
तुम्हारी शोभा
विदेह चाँदनी है,
अपना ही परिधान ।
धरती अब
लट्टू सी घूमती है
तो क्या ?
हम बड़े हो गए ।
पर्वतों की बड़ी बड़ी उमंगें
अँगूठे के बल खड़ीं
शांत, मौन, स्थिर हैं ।
समतल दृष्टि
समूची पृथ्वी न देख पाई पी,
ऊपर के प्रकाश से
समाधान हो गया ।
अब पंकस्थल पर भी चलें
तो ऊपर की दृष्टि
डूबने न देगी ।