तुम्हारी शोभा देख
फूलों की आंखें
अपलक रह गईं ।
तुम फूलों की फूल हो,
माखन सी कोमल ।
तुम्हारे शुभ्र वक्ष में
मुंह छिपाकर
मैं
ध्यान की
तन्मय अतलताओं में
डूब जाता हूँ ।
ओ कभी न खो जाने वाली,
मेरे इंद्रिय द्वारों से
तुम्हारे आनंद का
अति प्रवाह
दिगंतों के उस पार
टकराता रहता है ।
मेरी शांति
तुम्हारे
केन्द्र वृन्त पर
कभी न कुम्हलाने वाले
अस्तित्व की तरह
खिली है ।