तुम संयुक्त हो ?
फूल के कटोरों का मधु
मधुपायी पी गये
तो, पीने दो उन्हें !
नया वसंत
कल नये कटोरों में
नया आसव ढालेगा !
तुम्हारी देह का लावण्य
यदि इंद्रिय तृष्णा
पी गई हो
तो, छक कर पी लेने दो !
आत्मा के दूत
कल, नये क्षितिजों का सौन्दर्य
आँखों के सामने
खोलेंगे !
प्रेम
देह मन में सीमित,
वियोगानल में
जल रहा हो,
जलने दो,
वह सोने सा तपकर
नवीन कारुण्य
नवीन मांगल्य के
ऐश्वर्यों में
विकसित होगा !
तुम संयुक्त हो न !