काल नाल पर खिला
नया मानव,
देश धूलि में सना नहीं ।
समतल द्वन्द्वों से ऊपर,
दिक् प्रसारों के
रूप रंग गंध रज मधु
सौम्य पंखड़ियों में संवारे,
हीरक पद्म ।
एक है वह अंत: स्थित
बाह्य संतुलित, भविष्य मुखी
रश्मि पंख प्राण विहग,
सूर्य कमल ।
वह काल शिखर
देख रहा, बहिर्देश
बहिर्जीवन सीमाओं के पार
इतिहास पंक मुक्त ।
अंत: प्रबुध्द वहि: शुद्ध,
पूर्व पश्चिम का नहीं,
काल की देन अत्याधुनिक
अंतर्विकसित चैतन्य पुरुष,
ज्योति पद्म ।