ओ इस्पात के सत्य,
मनुष्य की नाड़ियों में बह,
उसके पैरों तले बिछ,
लोहे की टोपी बन
उसके सिर पर मत चढ़ ।
सिर पर
फूलों का ही मुकुट
शोभा देता है ।
स्वप्नों से घर की नींव
पड़ सकती है,
इस्पात गला कर
नहीं पिया जा सकता ।
फूल ही पात्र हैं
जिनसे मधु पिया जाता है ।
मैं ही हूँ वह मधु
जिसे प्रकृति ने
असंख्य फूलों से चुना है ।
जिसमें सभी आकाशों का
सुनहरा मरंद है ।
ओ इस्पात के तथ्य
मैं तेरा जूता पहन
दृढ़ संकल्प के चरण
वढ़ाऊँगा,
पर तुझे
मूर्धन्य स्थान
नहीं दे सकता ।
तू साधन रह,
साध्य न बन ।