तुम्हारी वेणी के प्रकाश नीड़ में
मैरे स्वप्न चहकते हैं,
ओ शुभ्र नीलिमे ।
जब तक अंधकार है
प्रकाश भी है ।
तुम्हारे पथ की
बाधा है ज्ञान,
सबसे बडा अज्ञान ।
वैसे तुम चीन्ही हो,
चिर परिचित हो ।
जब तक अंधकार है
ज्ञान बंधन बनता रहेगा;
ज्ञान का फल खाकर
मैं अज्ञान में डूब गया ।
मन के
काले सुफेद
पंख उग आए ।
ड्योढ़ी के भीतर
केवल शांति,
नि:स्वर शांति,
नि:सीम शांति है ।
जिसका छोर पकड़े
ज्ञान अज्ञान शून्य
मैं बढ़ता जाता हूँ,
बढ़ता जाता हूँ ।
ओ अंतरमयि,
तुम्हारा करुणा कर ही
ध्यान बन कर
गति हीन गति से
मुझे खींचता है ।
अपने स्थान पर
मैं तुम्हें पाता हूँ ।